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अ०१९/प्र०१
रविषेणकृत पद्मपुराण / ६३३ त्रियामायामतीतायां भास्करेऽभिनिवेदिते। प्रणम्य राघवः साधून् ववे निर्ग्रन्थदीक्षणम्॥ ११९/१९॥ आहारं कुण्डलं मौलिमपनीयाम्बरं तथा। परमार्थार्पित - स्वान्तस्तनु - लग्न - मलावलिः॥ ११९/२६ ॥ श्वेताब्जसुकुमाराभिरङ्गलीभिः शिरोरुहान्। निराचकार काकुत्स्थः पर्यङ्कासनमास्थितः॥ ११९ / २७ ॥
पद्मपुराण/भाग ३। अधोलिखित पद्यों में भी निर्ग्रन्थ शब्द को दिग्वासस् और दिगम्बर शब्दों के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त किया गया है
अत्यन्तदुस्सहा चेष्टा निर्ग्रन्थानां महात्मनाम्। परिकर्मविशुद्धस्य जायते सुखसाधना ॥ ३२ / १४३ ।। अनर्घ्यरत्नसदृशं तपो. दिग्वाससामिति। एवमप्यक्षमं वक्तुं परस्तस्योपमा कुतः॥ ३२ / १४५ ॥
पद्मपुराण / भाग २। इसी तरह सीता जी जब राम से कहती हैं- "हे नरश्रेष्ठ! तप से कृश शरीरवाले इस दिगम्बर-युगल को देखो।" तब राम चकित होकर उत्सुकता से पूछते हैं-"हे साध्वि! कहाँ है, कहाँ है वह निर्ग्रन्थ युगल?"
पश्य पश्य नरश्रेष्ठ! तपसा कृशविग्रहम्। दैगम्बरं परिश्रान्तं भदन्तयुगलं शुभम्॥ ४१/१८॥ क्व तत्क्व तत्प्रिये साध्वि पण्डिते चारुदर्शने। निर्ग्रन्थयुगलं दृष्टं भवत्या गुणमण्डने॥ ४१/१९॥
पद्मपुराण / भाग २। इस प्रकार दिगम्बर मुनि को ही निर्ग्रन्थ कहकर आचार्य रविषेण ने वस्त्रधारी मुनि के निर्ग्रन्थ कहे जाने का निषेध किया है, जो उनके यापनीय न होने और दिगम्बर होने का सूचक है। १.४. वस्त्र का भी परित्याग 'अशेषपरिग्रहत्याग' का लक्षण
मुकुट, कुण्डल और वस्त्र का परित्याग कर देनेवाले राम की शोभा का वर्णन | करते हुए रविषेण कहते हैं
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