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६१६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ० १८ / प्र०६
आगमिक दृष्टि से लिखा होने से सरल और विशद है और प्रमाणसंग्रहादि दार्शनिकदृष्टि से लिखे होने से जटिल और दुरवगाह हैं, फिर भी इन सबका कर्ता एक है और वे अकलंकदेव हैं, उसी प्रकार 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' आगमिक दृष्टिकोण से लिखा गया है और आप्तमीमांसा, युक्त्यनुशासन और स्वयंभूस्तोत्र दार्शनिक दृष्टिकोण से । अतः इन सबका कर्ता एक ही है और वे हैं स्वामी समन्तभद्र ।" ( अनेकान्त / वर्ष ६ / किरण १२/पृ.३८५)
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