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१७/प्र०२
तिलोयपण्णत्ती/४६१
के आगमविच्छेदक्रम न प्रक्षिप्त, न यापनीयकथित आपनीयपक्ष - डॉ० सागरमल जी लिखते हैं कि तिलोयपण्णत्ती में जो यापनीयमत के विरुद्ध आगम-विच्छेद का क्रम दिया गया है, वह प्रक्षिप्त है, क्योंकि पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री ने तिलोयपण्णत्ती में प्रक्षेपों का होना स्वीकार किया है। "दूसरे, मुझे ऐसा लगता है कि जब यापनीयसंघ में अध्ययन-अध्यापन की प्रवृत्ति शिथिल हो गयी, अपनी परम्परा में निर्मित ग्रन्थों से ही उनका काम चलने लगा, तभी आचार्यों द्वारा आगमों के क्रमिक उच्छेद की बात कही जाने लगी।" (जै.ध.या.स./पृ. ११६)।
दिगम्बरपक्ष
१. 'मुझे ऐसा लगता है' इन शब्दों से स्पष्ट है कि यापनीयपक्षधर विद्वान् ने आगम-विच्छेद की बात प्रचलित कर देने का जो हेतु बतलाया है, वह उन्होंने स्वबुद्धि से कल्पित किया है, उनके पास इसका कोई प्रमाण नहीं है। और इस दूसरे 'विकल्प को सोचने से सिद्ध है कि उन्हें पहले (प्रक्षेपवाले) विकल्प में पक्का भरोसा नहीं है, क्योंकि उसका भी उनके पास कोई प्रमाण नहीं है। इस तरह उन्होंने तिलोयपण्णत्ती में यापनीयमत-विरुद्ध उल्लेख को निरस्त करने के लिए जो दो वैकल्पिक हेतु सोचे हैं, वे स्वयं एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं। इस तरह न तो यह सिद्ध हो पाता है कि आगमविच्छेद के क्रम का उल्लेख प्रक्षिप्त है, और न यह कि यापनीय भी झूठमूठ आगमविच्छेद की बात करने लगे थे।
२. पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री ने अपने लेख में तिलोयपण्णत्ती के जिन अंशों को प्रक्षिप्त कहा है, उनमें श्रुतविच्छेदवाला अंश शामिल नहीं है।२९ उन्होंने केवल तिलोयपण्णत्ती के पहले महाधिकार की ७वीं गाथा से लेकर ८७ वी गाथा तक जो मंगल, कारण, हेतु, प्रमाण, नाम और कर्ता से सम्बन्धित वर्णन है, उसे षट्खण्डागम के सत्प्ररूपणा खण्ड की धवलाटीका पर आधारित माना है।३° उन्होंने यह भी माना है कि धवलाटीका का कुछ गद्यभाग भी तिलोयपण्णत्ती में ज्यों का त्यों ले लिया गया है।३१ इस आधार पर पण्डित जी ने वर्तमान तिलोयपण्णत्ती को धवलाटीका के
२९. देखिए, पं. फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री का लेख : "वर्तमान तिलोयपण्णत्ति और उसके । रचनाकाल आदि का विचार" ('जैन सिद्धान्त भास्कर'/भाग ११/ किरण १, जून, १९४४)। ३०. वही/ पृ.७१। ३१. वही/ पृ.७३।
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