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४५४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१७ / प्र० १
होते हुए भी। यदि स्तोत्रकार दिगम्बर थे, तो इस महत्त्वपूर्ण बात का जिक्र क्यों नहीं किया ? २५
विद्वद्द्द्वय ने नभोविहार और कमलविहार को अलग-अलग मान लिया है, जबकि ये अलग-अलग नहीं है। आकाश में गमन करते समय ही देवगण भगवान् के चरणों के नीचे कमल की रचना करते हैं, जैसा कि आप्तमीमांसा की 'देवागमनभोयान' इस कारिका (१) की आचार्य वसुनन्दी कृत निम्नलिखित व्याख्या से स्पष्ट है - " नभसि गगने हेममयाम्भोजोपरि यानं नभोयानम्' तथा स्वयंभूस्तोत्र के पद्मप्रभजिन - स्तवन के निम्न पद्य में भी यही बात कही गई है
नभस्तलं पल्लवयन्निव त्वं सहस्रपत्राम्बुजगर्भचारैः ।
पादाम्बुजैः पातितमारदप भूमौ प्रजानां विजहर्थ भूत्यै ॥ २९ ॥
इस तरह नभोविहार और कमलविहार अभिन्न हैं, अतः विद्वद्द्वय का भक्तामरस्तोत्र के उपर्युक्त पद्य में नभोयान का कथन न मानना उचित नहीं है, तथापि उनका यह मन्तव्य समीचीन है कि श्वेताम्बरमत में नभोयान की मान्यता नहीं है, जबकि दिगम्बरमत में है । तिलोयपण्णत्ती में तीर्थंकर के आकाशगमन का स्पष्ट शब्दों में उल्लेख हैं-.
जोयणसदमज्जादं सुभिक्खदा चउदिसासु णियठाणा । हयल-गमणमहिंसा भोयण उवसग्गपरिहीणा ॥ ४ / ९०८ ॥
इस गाथा में णहयलगमण ( नभतलगमन) को केवलज्ञान के ग्यारह अतिशयों में से एक बतलाया गया है। यह स्पष्टतः दिगम्बरपरम्परा का अनुसरण है, जो श्वेताम्बर और यापनीय परम्पराओं के विरुद्ध है। यह तिलोयपण्णत्ती के दिगम्बरपरम्परा का ग्रन्थ होने का एक अन्य प्रमाण है। उपर्युक्त श्वेताम्बर विद्वद्द्वय ने भी चौसठ चामर, भगवान् के आकाश गमन आदि के उल्लेख से तिलोयपण्णत्ती को दिगम्बरसम्प्रदाय का ग्रन्थ माना है।
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कुन्दकुन्द की गाथाओं का संग्रहण एवं अनुकरण
आचार्य यतिवृषभ ने कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार आदि ग्रन्थों की अनेक गाथाएँ तिलोयपण्णत्ती में ग्रहण की हैं तथा कई गाथाओं के अंश लेकर नई गाथाएँ रची हैं। इससे ज्ञात होता है कि यतिवृषभ आचार्य कुन्दकुन्द की आध्यात्मिक विचारधारा
२५. मानतुङ्गाचार्य और उनके स्तोत्र / पृष्ठ १०५
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