________________
४५२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१७ / प्र० १ में जो चामर-प्रतिहार्य है, उसकी संख्या को लेकर दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्पराओं में मान्यता - भेद है । श्वेताम्बरपरम्परा में दो ही चामर माने गये हैं, जब कि दिगम्बरपरम्परा में चामरसमूह या चौंसठ चामरों का उल्लेख है । भक्तामरस्तोत्र में 'कुन्दावदातचलचामरचारुशोभम्' (३०) इस पद्य में 'चामर' शब्द से 'दो चामर' अर्थ लेकर उन्होंने उसे श्वेताम्बराचार्यकृत सिद्ध करने की चेष्टा की है। देखिए -
44
'चामर प्रातिहार्य के सम्बन्ध में दिगम्बर- मान्यता में चामर प्रायः दो से अधिक संख्या में माना गया है। कुमुदचन्द्र ने चामरों के ओघ (समूह) की बात की है, तो जिनसेन ने आदिपुराण में चामरालि ( चामरावली) एवं ६४ चामरों की बात कही है । भक्तामर में बहुलतादर्शक कोई इशारा न होने से, वहाँ चामरयुग्म ही अपेक्षित मानना ठीक होगा और यह हकीकत, स्तोत्रकार मूलतः उस (श्वेताम्बरीय) प्रणाली का अनुकरण कर रहा हो, ऐसा आभास कराती है। दो चामरों की मान्यतावाली परिपाटी दिगम्बर नहीं है । " २२
और इसकी पादटिप्पणी में उक्त विद्वान् कहते हैं- "कहीं-कहीं दिगम्बर- मान्य कृतियों में भी दो चामर की बात कही गई हो, तो भी वे रचनाएँ मूलत: दिगम्बर थीं या यापनीय, इसका भी निर्णय होना जरूरी है । " २३
यद्यपि कुन्दावदातचलचामरचारुशोभम् इस पंक्ति में चामर के साथ संख्यावाचकविशेषण न होने से 'दो चामर' अर्थ किसी भी प्रकार ग्रहण नहीं किया जा सकता, इसके विपरीत समास में विभक्तिलोप हो जाने से और चामर की संख्या एक न होने से 'चामर' शब्द बहुवचन का ही प्रतिपादन करता है, तथापि विद्वद्द्द्वय का यह कथन सत्य है कि श्वेताम्बरपरम्परा में चामरयुंगल ही मान्य है और दिगम्बरपरम्परा में चामरसमूह या चौसठ चामर। यथा—
सीहासणे णिसण्णो रत्तासोगस्स सक्को सहेमजालं सयमेव य दो होन्ति चामराओ सेताओ मणियएहिं दण्डेहिं । ईसाणचमरसहिता धरेन्ति णातवच्छस्स ॥ १९८६ ॥
श्वेताम्बरग्रन्थ विशेषावश्यकभाष्य की इन गाथाओं में दो चामरों का ही वर्णन है ।
तथा दिगम्बराचार्य समन्तभद्र ने स्तुतिविद्या ( जिनशतक) के निम्न पद्य में बहुवचनात्मक 'चामरैः ' पद का प्रयोग किया है—
२२. मानतुङ्गाचार्य और उनके स्तोत्र / पृ. १०५
२३. वही / पृ. १०७ / पा. टि. ७ ।
Jain Education International
हेट्ठतो भगवं ।
गेण्हते छत्तं ॥ ९९८५ ॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org