________________
सप्तदश अध्याय तिलोयपण्णत्ती
प्रथम प्रकरण तिलोयपण्णत्ती के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण
क रचनाकाल : ईसा की द्वितीय शती का उत्तरार्ध 'आचार्य कुन्दकुन्द का समय' नामक दशम अध्याय के प्रथम प्रकरण में तिलोयपण्णत्ती के रचनाकाल का निर्धारण किया गया है। अनेक प्रमाणों के आधार पर उसके कर्ता आचार्य यतिवृषभ का समय ईसा की द्वितीय शताब्दी का उत्तरार्ध निश्चित होता है।
आचार्य यतिवृषभ के सम्प्रदाय पर प्रकाश डालते हुए सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री लिखते हैं-"जहाँ तक चूर्णिसूत्रकार आचार्य यतिवृषभ के आम्नाय का सम्बन्ध है, उसमें न तो कोई मतभेद है और न उसके लिए कोई स्थान ही है, क्योंकि उनकी त्रिलोकप्रज्ञप्ति (तिलोयपण्णत्ती) में दी गई आचार्यपरम्परा से ही यह स्पष्ट है कि वे दिगम्बर आम्नाय के आचार्य थे।" (क.पा./भा.१ / प्रस्ता./ पृ.६४)।
यापनीयग्रन्थ मानने के पक्ष में प्रस्तुत हेतु किन्तु जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय ग्रन्थ के मान्य लेखक डॉ. सागरमल जी जैन ने तिलोयपण्णत्ती के विषय में भी एक नयी उद्भावना की है। वे अपने उक्त ग्रन्थ में लिखते हैं कि तिलोयपण्णत्ती दिगम्बरपरम्परा का ग्रन्थ नहीं है, बल्कि यापनीयपरम्परा का है। इसके समर्थन में उन्होंने निम्नलिखित हेतु प्रस्तुत किये हैं
१. कसायपाहुडचूर्णि प्राचीन स्तर का ग्रन्थ है और विषयवस्तु एवं शैली की दृष्टि से अर्धमागधी आगमों और आगमिक व्याख्याओं के निकट है तथा शौरसेनी में
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org