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अ०१७/प्र०१
तिलोयपण्णत्ती / ४३३ . ग
सभी हेतु असत्य ये सभी हेतु यतिवृषभ को यापनीय सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किये गये हैं, और ऐसा करके यह निष्कर्ष निकालने की चेष्टा की गई है कि चूँकि यतिवृषभ यापनीय हैं, इसलिए उनके द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ती भी यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ है। किन्तु तिलोयपण्णत्ती में से एक भी उदाहरण ऐसा नहीं दिया गया है, जिससे यह सिद्ध हो कि उसमें यापनीय मान्यताओं का प्रतिपादन है, बल्कि यापनीयपक्षधर विद्वान् इस तथ्य से अच्छी तरह अवगत हैं कि ग्रन्थ में यापनीय-मान्यताओं के विरुद्ध कथन हैं। इसलिए उन्होंने उन्हें बिना किसी प्रमाण के प्रक्षिप्त मान लिया है और अपनी इच्छानुसार तिलोयपण्णत्ती को यापनीयमत का ग्रन्थ घोषित कर दिया।
ये सभी हेतु असत्य हैं, क्योंकि ग्रन्थ में उपलब्ध यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्त इसे दिगम्बरग्रन्थ सिद्ध करते हैं। इसके अतिरिक्त ये सभी हेतु कल्पित मतों और शब्दों में कल्पित अर्थारोपण द्वारा परिकल्पित किये गये हैं। इसलिए ये स्वरूपतः भी असत्य
यहाँ सर्वप्रथम तिलोयपण्णत्ती में उपलब्ध यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जा रहा है। उनके साक्षात्कार से प्रथमदृष्टि में ही स्पष्ट हो जायेगा कि उपर्युक्त हेतु असत्य हैं। उसके बाद वे जिन कल्पित मतों और शब्दों में कल्पित अर्थारोपण द्वारा परिकल्पित किये गये हैं, उनका स्पष्टीकरण किया जायेगा।
तिलोयपण्णत्ती में यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्त
सवस्त्रमुक्तिनिषेध तिलोयपण्णत्ती में कहा गया है कि देशव्रती श्रावक और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-शीलादि से परिपूर्ण स्त्रियाँ सौधर्मस्वर्ग से लेकर अच्युत (सोलहवें) स्वर्ग तक उत्पन्न होती हैं तथा जिनलिंगधारी अभव्य मुनि उपरिम ग्रैवेयक पर्यन्त एवं निर्ग्रन्थ भव्य साधु सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त जन्म लेते हैं। यथा
सोहम्मादी-अच्चुदपरियंतं जंति देसवदजुत्ता। चउविहदाणपयट्ठा अकसाया पंचगुरुभत्ता॥ ८/५८१॥
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