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अ०१३/प्र०२
भगवती-आराधना / ६३ . इसके अतिरिक्त चार आचारांगधारी शिष्यों में भी एक लोहार्य नाम के शिष्य थे।८ विष्णुनन्दी, नन्दिमित्र और अपराजित नाम भी पाँच श्रुतकेवलियों में पाये जाते हैं। ९ एक-अंगधारियों में माघनन्दी का नाम है। नन्द्यन्त नाम दिगम्बर-परम्परा में
और भी गिनाये जा सकते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द का एक नाम पद्मनन्दी था। पूज्यपादस्वामी देवनन्दी-नाम-धारी थे। 'परीक्षामुख' के कर्ता माणिक्यनन्दी का नाम भी ऐसा ही है। अतः आर्यान्त और नन्द्यन्त नाम होना यापनीयसंघी होने का हेतु (असाधारणधर्म या लक्षण) नहीं है, अपितु हेत्वाभास है।
पं० नाथूराम जी प्रेमी लिखते हैं-"आर्य शब्द आचार्य का पर्यायवाची है। प्राचीन ग्रन्थों में यह अधिक व्यवहृत हुआ है।"८१ इसका प्रमाण यह है कि लोहार्य को लोहाचार्य भी कहा गया है।
____२. पाणितलभोजी दिगम्बर मुनि भी होते हैं, अतः यह विशेषण भी यापनीयत्व का असाधारणधर्म नहीं है। फलस्वरूप यह भी हेत्वाभास है।
इसलिए आर्यान्त और नन्द्यन्त नामों तथा पाणितलभोजी विशेषण के आधार पर भी भगवती-आराधना को यापनीयग्रन्थ कहना भ्रान्तिपूर्ण है।
अपराजित सूरि दिगम्बराचार्य थे
यापनीयपक्ष
पं० नाथूराम जी प्रेमी-"अपराजित सूरि यदि यापनीय संघ के थे, तो अधिक संभव यही है कि उन्होंने अपने ही सम्प्रदाय के ग्रन्थ की टीका की है।" (जै.सा.इ./ प्र.सं./पृ.५७)। दिगम्बरपक्ष
१.अपराजित सूरि ने भगवती-अराधना की विजयोदयाटीका में सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति और परतीर्थिकमुक्ति का निषेध करनेवाले सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया
७८. वही/ पुस्तक १/ पृ.१८॥ ७९. वही/ पुस्तक १/ पृ.१८-१९ । ८०. वही/ पुस्तक १/ पृ.२३ । ८१. "भगवती-आराधना और उसकी टीकाएँ" अनेकान्त/ वर्ष १/ किरण ३/ माघ, वी. नि. सं.
२४५६ / पृ.१४६ ।
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