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१४२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१४/प्र०२ डॉ० सागरमल जी लिखते हैं-"भगवती-आराधना मूल गाथा ७६ से ८६ तक में और उसकी अपराजित की विजयोदयाटीका में मुनि के उत्सर्ग और अपवादलिंग की विस्तृत चर्चा है। इसमें वस्त्रधारण को अपवादलिंग माना गया है। हमारे दिगम्बर आचार्य वस्त्रधारी को श्रावक की कोटि में वर्गीकृत करते हैं, उसे किसी भी स्थिति में मुनि नहीं मानते हैं, जब कि अपराजित उन्हें मुनि की कोटि में ही वर्गीकृत करते हैं, कहीं भी उन्हें उत्कृष्ट श्रावक नहीं कहते हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि अपवादलिंग की यह चर्चा मुनि के सन्दर्भ में ही है, गृहस्थ के सन्दर्भ में नहीं है। गृहस्थ तो सदैव ही वस्त्रयुक्त होता है। जो वस्त्रधारी ही है, उसके लिए वस्त्रधारण अपवाद कैसे हो सकता है? किन्तु हमारे कुछ मूर्धन्य दिगम्बर विद्वान् शब्दों को तोड़-मरोड़ कर अपवादलिंग को गृहस्थलिंग बताने का प्रयास करते हैं। पं० कैलाश चन्द्र जी भगवतीआराधना की भूमिका में लिखते हैं कि "इस टीका में अपराजितसूरि ने औत्सर्गिक का अर्थ सकलपरिग्रह के त्याग से उत्पन्न हुआ किया है तथा आपवादिक लिंग का अर्थ परिग्रहसहित किया है, क्योंकि यतियों के अपवाद का कारण होने से परिग्रह को अपवाद कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि आपवादिक लिंग का धारी गृहस्थ ही होता है, मुनि तो औत्सर्गिक लिंग का ही धारी होता है।" किन्तु अपवाद की उनकी यह व्याख्या भ्रान्त है। मूलग्रन्थ और टीका में अपवादलिंग का तात्पर्य लिंग, अण्डकोष आदि में दोष होने पर या सम्भ्रान्त कुल का एवं लजालु होने पर वस्त्रयुक्त रहकर भी मुनिचर्या करना है। अपवादलिंगी मुनि ही होता है, गृहस्थ नहीं। इस सम्बन्ध में डॉ० कुसुम पटोरिया का दृष्टिकोण यथार्थ है। वे लिखती हैं कि "अपवाद उत्सर्गसापेक्ष होता है। परिग्रहत्याग मुनि का उत्सर्गलिंग है, अतः परिग्रह-धारण भी यति का ही अपवादलिंग होता होगा। गृहस्थ तो परिग्रही होता ही है। अतः अपवादलिंग मुनि का ही होता है।" यह बात इसी तथ्य को प्रमाणित करती है कि अपराजित की विजयोदया टीका यापनीयकृति है।" (जै.ध.या.स./पृ.१५७-१५८)। दिगम्बरपक्ष
१.१. सवस्त्रमुक्ति के घोर विरोधी-प्रस्तुत अध्याय के प्रथम प्रकरण में अपराजितसूरि के अनेक वचनों को उद्धृत कर सिद्ध किया गया है कि वे सवस्त्रमुक्ति के घोर विरोधी हैं। उन्होंने तेजस्वी शब्दों में सवस्त्रमुक्ति का निषेध किया है। उन्होंने श्वेताम्बर साधुओं के सचेललिंग में ऐसे अठारह दोष बतलाये हैं, जो मोक्ष में बाधक हैं और एकमात्र अचेललिंग को ही मोक्ष का निर्दोष मार्ग प्ररूपित किया है। अतः उन्हें मोक्ष के लिए सचेल अपवादमार्ग का समर्थक बतलाना महान् असत्य कथन है। अपराजितसूरि ने स्पष्ट शब्दों में कहा है
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