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३६४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अध्यायक्रमांक सूत्रक्रमांक
स. सि. भाष्य २० २१
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अ०१६/प्र०२ - पंक्तिसंख्या सि... भाष्य ४ १४
७ ७ ७० २४ २४६
९ ७ २५ १४१ इसे देखते हुए डॉक्टर साहब के उपर्युक्त तर्क के अनुसार सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा भाष्य विकसित सिद्ध होता है। ६.३. अव्याख्या व्याख्याग्रन्थ की अविकसितता का लक्षण नहीं
डॉ० सागरमल जी ने तत्त्वार्थाधिगमभाष्य की अविकसितता का उदाहरण देते हुए अपने पूर्वोद्धृत वक्तव्य में कहा है कि उसमें प्रथम अध्याय के आठवें सूत्र की व्याख्या में "मार्गणा के रूप में मात्र गति, इन्द्रिय, काय, योग, कषाय आदि का नामोल्लेख है, उनके सम्बन्ध में कोई विस्तृत चर्चा नहीं की गई है।" ( जै.ध.या.स./पृ. ३०३)।
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