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अ०१६/प्र०४
तत्त्वार्थसूत्र / ३९९ यहाँ ऐसा लगता है जैसे नियमसार की गाथा में ही किंचित् शब्दिक परिवर्तन कर तत्त्वार्थ के प्रस्तुत सूत्र की रचना कर दी गयी हो। ऐसी समानता स्थानांग के सूत्र के साथ तनिक भी दृष्टिगोचर नहीं होती।
तत्त्वार्थसूत्र - संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम्। ५/१०। नियमसार - संखेज्जासंखेज्जाणंतपदेसा हवंति मुत्तस्स। ३५। प्रज्ञापना - अणंता संखिज्जपएसिया खंधा, अणंता असंखिज्जपएसिया
खंधा, अणंता अणंतपएसिया खंधा। पद ५। यहाँ भी तत्त्वार्थ के सूत्र का शाब्दिक और सूत्रात्मक साम्य नियमसार के गाथांश से ही है, प्रज्ञापना के वाक्य से नहीं।
१६ तत्त्वार्थसूत्र - आकाशस्यावगाहः। ५/१८ । प्रवचनसार - आगासस्सावगाहो। २/४१ । व्याख्याप्रज्ञ. - अवगाहणालक्खणे णं आगासत्थिकाए। १३ /४/४८१ ।
यहाँ भी प्रवचनसार के ही शब्द संस्कृत में रूपान्तरित कर दिये गये हैं। तत्त्वार्थ का यह सूत्र शाब्दिक और सूत्रात्मक दृष्टि से व्याख्याप्रज्ञप्ति से बहुत भिन्न है।
१७
तत्त्वार्थसूत्र - स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः। ५ /२३। पंचास्तिकाय - वण्णरसगंधफासा परमाणुपरूविदा विसेसा हि। ५१ । व्याख्याप्रज्ञ. - पोग्गले पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे पण्णत्ते।१२/५/४५०।
यहाँ भी पञ्चास्तिकाय की गाथा के साथ ही तत्त्वार्थ के सूत्रगत शब्दों का साम्य है, व्याख्याप्रज्ञप्ति के सूत्र के साथ नहीं।
१८
तत्त्वार्थसूत्र - अणवः स्कन्धाश्च। ५ / २५ । नियमसार - अणुखंधवियप्पेण दु पोग्गलदव्वं हवेइ दुवियप्पं। २०।
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