________________
४१८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१६/प्र०६ रचना के बाद हुई है। दिगम्बर-पट्टावलियों और शिलालेखों में तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता गृध्रपिच्छाचार्य का नाम आचार्य कुन्दकुन्द के बाद आया है और कुन्दकुन्द का समय ईसापूर्व प्रथम शताब्दी का उत्तरार्ध एवं ईसोत्तर प्रथम शताब्दी का पूर्वार्ध निश्चित किया गया है, अतः तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता गृध्रपिच्छाचार्य द्वितीय शताब्दी ई० के पूर्वार्ध में हुए थे।६८ इसलिए तत्त्वार्थसूत्र का रचनाकाल यही है।
इस प्रकार इन छह प्रकरणों में प्रस्तुत किये गये ये बहुविध प्रमाण इस बात के साक्षी हैं कि तत्त्वार्थसूत्र दिगम्बरग्रन्थ ही है, श्वेताम्बरग्रन्थ नहीं।
१६८. देखिए , अध्याय १०/प्रकरण १/शीर्षक ४.१. 'तत्त्वार्थसूत्र का रचनाकाल।'
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org