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अ०१६/प्र०४
तत्त्वार्थसूत्र / ४०७ १. यद्यपि पाँचवीं शताब्दी ई० में रचित नन्दीसूत्र में मरणविभक्ति नामक प्रकीर्णक का उल्लेख है, तथापि उसमें अनुयोगद्वारसूत्र का भी निर्देश है। और डॉक्टर साहब ने स्वयं लिखा है कि "अनुयोगद्वारसूत्र निश्चित ही तत्त्वार्थसूत्र एवं उसके भाष्य से किञ्चित् परवर्ती है।" (जै.ध.या.स./ पृ. ३२२)। इसलिए 'मरणविभक्ति' नामक ग्रन्थ केवल इस आधार पर तत्त्वार्थसूत्र से पूर्ववर्ती नहीं हो जाता कि उसका उल्लेख नन्दीसूत्र में है।
२. दूसरी बात यह है कि नन्दीसूत्र में २९ उत्कालिक (दिन और रात्रि के दूसरे और तीसरे प्रहर में भी पढ़े जाने योग्य) सूत्रों का वर्णन किया गया है-१.दशवैकालिक, २.कल्पाकल्प, ३.लघुकल्प, ४.महाकल्प, ५.औपपातिक, ६.राजप्रश्नीय, ७.जीवाभिगम, ८.प्रज्ञापना, ९.महाप्रज्ञापना, १०.प्रमादाप्रमाद, ११.नन्दी, १२.अनुयोगद्वार, १३.देवेन्द्रस्तव, १४.तंदुलवैचारिक, १५.चन्द्रवेध्यक, १६.सूर्यप्रज्ञप्ति, १७.पौरुषीमण्डल, १८.मण्डप्रवेश, १९.विद्याचरणविनिश्चय, २०.गणिविद्या, २१.ध्यानविभक्ति, २२.मरणविभक्ति, २३.आत्मविशुद्धि, २४.वीतरागश्रुत, २५.सल्लेखनाश्रुत, २६.विहारकल्प, २७.आतुरप्रत्याख्यान, २८.महाप्रत्याख्यान और २९.चरणाविधि। (नन्दीसूत्र / पृ. ४००)।
. इनमें से दशवैकालिक, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, नन्दी, अनुयोगद्वार, और सूर्यप्रज्ञप्ति, मात्र इन आठ को नन्दीसूत्र के विवेचक मुनि श्री पारसकुमार जी ने विद्यमान बतलाया है, शेष २१ के बारे में कहा है कि उनका विच्छेद हो गया है।६२ इस प्रकार नन्दीसूत्र में उल्लिखित मरणविभक्ति का अस्तित्व ही नहीं है। जो उपलब्ध है, उसकी रचना तत्त्वार्थसूत्र और भगवती-आराधना के बाद हुई है। इसलिए उसमें जो बारह अनुप्रेक्षाओं का विस्तृत वर्णन है, वह तत्त्वार्थसूत्र और भगवतीआराधना के आधार पर ही किया गया है। अतः डॉक्टर साहब का यह कथन उचित है कि मरणविभक्ति की भावना-सम्बन्धी गाथाओं में से अनेक भगवती-आराधना और मूलाचार में मिलती हैं। किन्तु उनका यह कथन सही नहीं है कि भगवती-आराधना
और मूलाचार यापनीयपरम्परा के ग्रन्थ हैं। पूर्व में सप्रमाण सिद्ध किया जा चुका है कि ये दोनों ग्रन्थ शतप्रतिशत दिगम्बराचार्यों की कृतियाँ हैं। निष्कर्ष यह कि तत्त्वार्थ का अनुप्रेक्षासूत्र बारस-अणुवेक्खा, भगवती-आराधना और मूलाचार इन दिगम्बरग्रन्थों से घनिष्ठ साम्य रखता है, श्वेताम्बरग्रन्थों से उसकी समानता बहुत अल्प है।
१६२. नन्दीसूत्र / पृ. ४०२ / अ.भा.साधुमार्गी जैन संस्कृतिरक्षक संघ सैलाना (म.प्र.) सन् १९८४
ई०।
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