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अ०१६/प्र०४
तत्त्वार्थसूत्र / ३९५ उत्तरा.सूत्र - ना दंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा।
अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं॥२८/३०॥ यहाँ तत्त्वार्थ के सूत्र की पंचास्तिकाय के गाथासूत्र के साथ शाब्दिक और रचनात्मक (अल्पशब्दप्रयोग की) दृष्टि से अत्यधिक समानता है, किन्तु उत्तराध्ययनसूत्र की गाथा के साथ इन दोनों दृष्टियों से बहुत भिन्नता है।
तत्त्वार्थसूत्र - तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्। १।२। समयसार - जीवादीसदहणं सम्मत्तं। १५५ । उत्तरा. सूत्र – तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसणं।
भावेणं सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ २८/१५॥ यहाँ भी उपर्युक्त सत्य ही दृष्टिगोचर होता है।
तत्त्वार्थसूत्र - जीवाजीवात्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्। १/४। भावपाहुड - सव्वविरओ वि भावहि णवयपयत्थाई सत्ततच्चाई।
. जीवसमासाइं मुणी चउदसगुणठाणणामाई॥ ९५॥ स्थानांग - नवसब्भावपयत्था पण्णत्ते, तं जहा-जीवा अजीवा पुण्णं पावो
आसवो संवरो निज्जरा बंधो मोक्खो। ९/६६५।। यहाँ द्रष्टव्य है कि कुन्दकुन्द ने भावपाहुड में नौ पदार्थ और सात तत्त्व दोनों का कथन किया है, जब कि श्वेताम्बरागम स्थानांग में केवल नौ पदार्थों का कथन है। किसी भी श्वेताम्बरागम में सात तत्त्वों की अवधारणा नहीं है। अतः सिद्ध है कि तत्त्वार्थसूत्रकार ने उपर्युक्त सूत्र की रचना भावपाहुड के आधार पर की है।
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तत्त्वार्थसूत्र - नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः। (१/५)। बोधपाहुड - णामे ठवणे हि य संदव्वे भावे हि सगुणपज्जाया। २८। अनुयो.द्वा.सूत्र - आवस्सयं चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-नामावस्सयं ठवणावस्सयं
दव्वावस्सयं भावावस्सयं। १७ । ___ यतः अनुयोगद्वारसूत्र पाँचवीं शती ई० की रचना है, अतः स्पष्ट है कि तत्त्वार्थ का उपर्युक्त सूत्र कुन्दकुन्दकृत बोधपाहुड के आधार पर रचा गया है।
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