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३९२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
है, वे इस प्रकार हैं
१. नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः । त. सू. / १ / ५ ( अनुयोगद्वार / सूत्र ८ पर आधारित) ।
२. निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः । त. सू/ १ / ७ (अनुयोगद्वार / सूत्र १५१ पर आधारित) ।
३. मति: स्मृति: संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् । त.सू./१/१३ ( नन्दिसूत्र / मतिज्ञान-गाथा ८० पर आधारित) ।
अ० १६ / प्र० ४
४. तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् । त. सू. / १ / १४ ( नन्दिसूत्र / सूत्र ३ एवं अनुयोगद्वार, सूत्र १४४ पर आधारित) ।
५. अवग्रहेहावायधारणाः । त. सू. / १ / १५ ( नन्दिसूत्र / सूत्र २७ पर आधारित ) । ६. अर्थस्य । त.सू./१/१७ ( नन्दिसूत्र / सूत्र ३० पर आधारित ) ।
७. विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः । त. सू. /१ / २४ ( नन्दिसूत्र / सूत्र १८ पर आधारित) ।
८. विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनः पर्यययोः । त. सू. /१ / २५ ( नन्दिसूत्र / मन:पर्ययज्ञानाधिकार पर आधारित) ।
९. मतिश्रुतयोर्निबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु । त.सू./१ / २६ ( नन्दिसूत्र / सूत्र ३७ एवं ५८ पर आधारित ) ।
१०. रूपिष्ववधेः। त.सू./ १ /२७ ( नन्दिसूत्र / सूत्र १६ पर आधारित ) ।
११. सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य । त.सू./१/२९ ( नन्दिसूत्र / सूत्र २२ पर आधारित) । १२. नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढैवम्भूता नयाः । त. सू. / १ / ३३ । यह निम्नलिखित सूत्र पर आधारित बतलाया गया है - "सत्तमूलणया पण्णत्ता, तं जहा - गमे संगहे ववहारे उज्जुसूए सद्दे समभिरूढे एवंभूए" (अनुयोगद्वार / सूत्र १३६ तथा स्थानांग ७ / ५५२ ) । किन्तु यह सूत्र इन दोनों श्वेताम्बरग्रन्थों में 'तत्त्वार्थ' के दिगम्बरमान्य पाठ से लिया गया है, क्योंकि श्वेताम्बरमान्य पाठ में पाँच ही मूल नय बतलाये गये हैं- " नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दा नया: १ / ३४ ।
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१३. द्वितीय अध्याय के सूत्र क्रमांक ३, ४, ५, ६, और ७ 'अनुयोगद्वार' के षड्भावाधिकार पर आधारित बतलाये गये हैं ।
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