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चतुर्थ प्रकरण तत्त्वार्थसूत्र की रचना के आधार दिगम्बरग्रन्थ
श्वेताम्बर-आगम तत्त्वार्थसूत्र की रचना के आधार नहीं श्वेताम्बरपक्ष
श्वेताम्बर मुनियों एवं विद्वानों का कथन है कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना के स्रोत श्वेताम्बर-आगम हैं, दिगम्बर-आगम नहीं। श्वेताम्बर मुनि उपाध्याय श्री आत्माराम जी ने सन् १९३४ ई० में प्रकाशित अपने ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र-जैनागम-समन्वय में उदाहरण देकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना श्वेताम्बर-आगमों के आधार पर हुई है।
श्वेताम्बर विद्वान् पं० सुखलाल संघवी लिखते हैं-"उस प्राचीन समय में जैनपरम्परा में दिगम्बर-श्वेताम्बर जैसे शब्द नहीं थे, फिर भी आचारभेद के सूचक 'नग्न', 'अचेल' (उत्त. /२३/१३,२९), 'जिनकल्पिक, 'पाणिप्रतिग्रह' (कल्पसूत्र/९/२८), 'पाणिपात्र'
आदि शब्द उत्कट-त्यागवाले दल के लिए तथा 'सचेल', 'प्रतिग्रहधारी' (कल्पसूत्र ९/३१), 'स्थविरकल्प' (कल्पसूत्र/९/६३) आदि शब्द मध्यम-त्यागवाले दल के लिए मिलते हैं।" (त.सू./वि.स. / प्रस्ता. / पृ. १९)।
"---अचेलत्व-समर्थक दल का कहना था कि मूल अंगश्रुत सर्वथा लुप्त हो गया है, जो श्रुत सचेलदल के पास है और जो हमारे पास है, वह सब मूल अर्थात् गणधरकृत न होकर बाद के अपने-अपने आचार्यों द्वारा रचित व संकलित है। सचेलदलवाले कहते थे कि निःसन्देह बाद के आचार्यों द्वारा अनेकविध नया श्रुत निर्मित हुआ है और उन्होंने नई संकलना भी की है, फिर भी मूल अंगश्रुत के भावों में कोई परिवर्तन या काँट-छाँट नहीं की गयी है।" (वही/प्रस्ता./पृ. २१)।
"---वाचक उमास्वाति स्थविर या सचेल-परम्परा के आचारवाले अवश्य रहे, अन्यथा उनके भाष्य एवं 'प्रशमरति' ग्रन्थ में सचेलधर्मानुसारी प्रतिपादन कदापि न होता, क्योंकि अचेलदल के किसी भी प्रवर मुनि की सचेल-प्ररूपणा बिलकुल सम्भव नहीं। अचेलदल के प्रधान मुनि कुन्दकुन्द ने भी एकमात्र अचेलत्व का ही निर्देश किया है (प्रवचनसार/अधिकार ३), अतः कुन्दकुन्द के अन्वय में होनेवाले किसी अचेल मुनि द्वारा सचेलत्व-प्रतिपादन संगत नहीं। 'प्रशमरति' की उमास्वाति-कर्तृकता भी विश्वसनीय है। स्थविरदल की प्राचीन और विश्वस्त वंशावली में उमास्वाति की उच्चनागर
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