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३७६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१६/प्र०२ "साक्षान्मोक्षमार्गस्य सकलबाधकप्रमाणरहितस्य य प्रणेता स एव विश्वतत्त्वज्ञताऽऽश्रयः प्रतिपाद्यते---।" १५२
अनुवाद-"जो समस्त बाधक प्रमाणों से रहित साक्षात् मोक्षमार्ग का प्रणेता है, वही विश्वतत्त्वज्ञता का आश्रय है, अर्थात् सर्वज्ञ है, यह हम प्रतिपादित करते हैं ---"
डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया ने उपर्युक्त वाक्य में पादटिप्पणी (क्रमांक २) देकर सूचित किया है कि 'आप्तपरीक्षा' की 'मु'-संज्ञक प्रतियों अर्थात् मुद्रित दो प्रतियों (जैनधर्म प्रचारिणी सभा, काशी/ई० सन् १९१३ एवं जैनसाहित्य-प्रसारक कार्यालय बम्बई / ई० सन् १९३०) में 'विश्वतत्त्वज्ञताऽऽश्रयः' के पश्चात् 'तत्त्वार्थसूत्रकारैरुमास्वामिप्रभृतिभिः' पाठ अधिक है, जिसे शामिल करने पर उपर्युक्त वाक्य का अर्थ इस प्रकार फलित होता है
___"जो समस्त बाधक प्रमाणों से रहित साक्षात् मोक्षमार्ग का प्रणेता है, वही विश्वतत्त्वज्ञता का आश्रय है, अर्थात् सर्वज्ञ है, यह उमास्वामी आदि सूत्रकारों के द्वारा प्रतिपादित किया जाता है (किया गया है)।" ___ उपर्युक्त अधिक पाठ प्रक्षिप्त है, इसके निम्नलिखित प्रमाण हैं
१. यह डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया को प्राप्त 'आप्तपरीक्षा' की 'द' 'प' एवं 'स' नामक लिखित प्रतियों में उपलब्ध नहीं है। इसीलिए डॉ० कोठिया ने इसे आप्तपरीक्षा के स्वसम्पादित संस्करण में नहीं रखा। (देखिए, आप्तपरीक्षा/सम्पादकीयडॉ० दरबारीलाल कोठिया / पृ.२)।
२. उपर्युक्त दो मुद्रित प्रतियों में दूसरी प्रति पहली प्रति का ही प्रतिरूप है (देखिये, वही/पृ.२), अतः उक्त अधिक पाठ एक ही मुद्रित प्रति में उपलब्ध मानना चाहिए।
३. उक्त पाठ को सम्मिलित करने से वाक्य का अर्थ असंगत हो जाता है। उपर्युक्त वाक्य तत्त्वार्थसूत्र के 'मोक्षमार्गस्य नेतारं' इत्यादि मंगलाचरण की व्याख्या के प्रसंग में उक्त है तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता एक ही आचार्य हैं, अतः मंगलाचरण भी एक ही आचार्य द्वारा निबद्ध है। किन्तु 'तत्त्वार्थसूत्रकारैरुमास्वामिप्रभृतिभिः' शब्दों को शामिल करने से यह अर्थ निकलता है कि तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वामी आदि अनेक आचार्य
१५२. आप्तपरीक्षा / सम्पादक-अनुवादक : डॉ. दरबारीलाल कोठिया / भारतवर्षीय अनेकान्त
विद्वत्परिषद् / ई.सन् १९९२ / कारिका ११९ / पृ. ३४५ ।
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