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अ०१६ / प्र०१
तत्त्वार्थसूत्र / ३२५ भाष्यकर्ता चिरं दीर्घ जीयाज्जयं गम्यादित्याशीर्वचोऽस्माकं लेखकानां निर्मलग्रन्थरक्षकाय प्राग्वचनचौरिकायामशक्यायेति।"
इन शब्दों का भावार्थ यह है कि-"जिसने इस तत्त्वार्थशास्त्र को अपने ही वचन के पक्षपात से मलिन अनुदार कुत्तों के समूहों द्वारा ग्रहीष्यमान-जैसा जानकर, यह देखकर कि ऐसी कुत्ता-प्रकृति के विद्वान् लोग इसे अपना अथवा अपने सम्पद्राय का बनाने वाले हैं-पहले ही इस शास्त्र की मूलचूल-सहित रक्षा की है-इसे ज्यों का त्यों श्वेताम्बर-सम्प्रदाय के उमास्वाति की कृतिरूप में ही कायम रक्खा है, वह (अज्ञातनामा) भाष्यकार चिरंजीव होवे, चिरकाल तक जय को प्राप्त होवे, ऐसा हम टिप्पणकार जैसे लेखकों का उस निर्मल ग्रन्थ के रक्षक तथा प्राचीन वचनों की चोरी में असमर्थ के प्रति आशीर्वाद है।" ११२.१
"यहाँ (टिप्पणकार ने) भाष्यकार का नाम न देकर उसके लिए स कश्चित् (वह कोई) शब्दों का प्रयोग किया है, जबकि मूल सूत्रकार का नाम उमास्वाति कई स्थानों पर स्पष्टरूप से दिया है। इससे साफ ध्वनित होता है कि टिप्पणकार को भाष्यकार का नाम मालूम नहीं था और वह उसे मूल सूत्रकार से भिन्न समझता था। भाष्यकार का निर्मलग्रन्थरक्षकाय विशेषण के साथ प्राग्वचनचौरिकायामशक्याय विशेषण भी इसी बात को सूचित करता है। इसके प्राग्वचन का वाच्य तत्त्वार्थसूत्र जान पड़ता है, जिसे प्रथम विशेषण में निर्मलग्रन्थ कहा गया है। भाष्यकार ने उसे चुराकर अपना नहीं बनाया, वह अपनी मनःपरिणति के कारण ऐसा करने के लिए असमर्थ था, यही आशय यहाँ व्यक्त किया गया है। अन्यथा, उमास्वाति के लिए इस विशेषण की कोई जरूरत नहीं थी, यह उनके लिए किसी तरह भी ठीक नहीं बैठता, साथ ही 'अपने ही वचन के पक्षपात से मलिन अनुदार कुत्तों के समूह द्वारा ग्रहीष्यमानजैसा जानकर' ऐसा जो कहा गया है, उससे यह भी ध्वनित होता है कि भाष्य की रचना उस समय हुई है, जब कि तत्त्वार्थसूत्र पर 'सवार्थसिद्धि' आदि कुछ प्राचीन दिगम्बर-टीकाएँ बन चुकी थीं और उनके द्वारा दिगम्बर समाज में तत्त्वार्थसूत्र का अच्छा प्रचार प्रारम्भ हो गया था। इस प्रचार को देखकर ही किसी श्वेताम्बर विद्वान् को भाष्य के रचने की प्रेरणा मिली है और उसके द्वारा तत्त्वार्थसूत्र को श्वेताम्बर बनाने ११२.१.मुख्तार जी कृत भावार्थ का सारांश इस प्रकार है-'जो कोई इस भाष्य का कर्ता है,
उसने पहले से ही जान लिया था कि स्वभाव से कुटिल और पक्षपात से मलिन कुत्ते (दिगम्बर) इस तत्त्वार्थशास्त्र पर कब्जा कर लेंगे, इसलिए उसने भाष्य की रचना कर इसकी समूलचूल रक्षा की है। वह निर्मलग्रन्थ का रक्षक और प्राचीन वचनों की चोरी में असमर्थ भाष्यकार चिरजीवी हो, विजयी हो, यह हम लेखकों का उस के लिए आशीर्वाद
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