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अ० १६ / प्र० २
तत्त्वार्थसूत्र / ३५१
इन प्रमाणों से जब यह सिद्ध होता है कि सर्वार्थसिद्धिकार के समक्ष तत्त्वार्थाधिगमभाष्य उपस्थित नहीं था, तब यह स्वयमेव सिद्ध हो जाता है कि उनमें जो समान वाक्य उपलब्ध होते हैं, वे सर्वार्थासिद्धि से ही भाष्य में लिए गये हैं । अतः सर्वार्थसिद्धि भाष्य के पूर्व की रचना है, फलस्वरूप तत्त्वार्थसूत्र और तत्त्वार्थाधिगमभाष्य के कर्त्ता भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं ।
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सर्वार्थसिद्धि को भाष्योत्तरवर्ती सिद्ध करनेवाले हेतु असत्य
माननीय पं० सुखलाल जी संघवी ने तत्त्वार्थाधिगमभाष्य को सर्वार्थसिद्धि से प्राचीन सिद्ध करने के लिए तीन हेतु प्रस्तुत किये हैं - १. भाष्य की शैली सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा प्राचीन है, २. सर्वार्थसिद्धि में भाष्य की अपेक्षा अर्थ का विस्तार हुआ है अर्थात् विषय-विवेचन अधिक है, ३. सर्वार्थसिद्धि में साम्प्रदायिक अभिनिवेश के तत्त्व दिखाई देते हैं, जब कि भाष्य में उनका अभाव है । (त.सू. / वि. स. / प्रस्ता. / पृ. ६२-६४) । हेतु असत्य हैं। सत्यता इनके ठीक
माननीय संघवी जी के द्वारा प्रस्तुत ये विपरीत है । प्रमाण नीचे दिये जा रहे हैं
६.१. तत्त्वार्थाधिगमभाष्य की शैली अर्वाचीन
संघवी जी का कथन है कि सर्वार्थसिद्धि में सम्यक्, दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि शब्दों का व्याकरणिक विश्लेषण भाष्य की अपेक्षा विस्तार से किया गया है तथा दार्शनिक विवेचन भी अधिक है। अतः सर्वार्थसिद्धि की निरूपणशैली भाष्य से अर्वाचीन है । (त.सू./वि.स./ प्रस्ता. / पृ. ६३ ) । किन्तु मेरे अध्ययन के अनुसार भाष्य में ऐसे अनेक तत्त्व उपलब्ध होते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि उसकी शैली में सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा बहुत नवीनता है । यथा
१. तत्त्वार्थसूत्र में जो 'मोक्षमार्गस्य नेतारं' इत्यादि मंगलाचरण है, वह सूत्रकारकृत है। (देखिए, डॉ० दरबारीलाल कोठियाकृत जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्रपरिशीलन / पृ. ३१) । सर्वार्थसिद्धिटीका में मंगलाचरनण नहीं है। किन्तु तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में 'कृत्वा त्रिकरणशुद्धं' इत्यादि दो श्लोकों ( २१-२२) का मंगलाचरण है। इतना ही नहीं, उसमें मंगलाचरण के पूर्व बीस श्लोंकों में अन्य विषयों का भी वर्णन किया गया है, जैसे उत्तम, मध्यम और अधम मनुष्यों की प्रवृत्तियों का निरूपण, अर्हन्तों की पूजनीयता और तीर्थंकरनामकर्म के फल का वर्णन, भगवान् महावीर की जाति, कुल तथा शारीरिक एवं बौद्धिक गुणों का कथन, उनके वैराग्य, दीक्षा, केवलज्ञान की प्राप्ति, तीर्थोपदेश
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