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अ०१५ / प्र०२
मूलाचार / २४९ ८. मूलाचार की जो गाथाएँ श्वेताम्बरग्रन्थों की गाथाओं से समानता रखती हैं, वे मूलाचार या भगवती-आराधना से उन ग्रन्थों में पहुँची हैं।
९. 'बाबीसं तित्थयरा' आदि गाथाएँ दिगम्बर मान्यताओं के प्रतिकूल नहीं हैं।
१०. मूलाचार में अस्वाध्यायकाल में जिन शास्त्रों को पढ़ने का उपदेश दिया गया है, वे दिगम्बरपरम्परा में उपलब्ध हैं।
११. मूलाचार में आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अनेक गाथाएँ ग्रहण की गई हैं, मुनि के २८ मूलगुणों का भी प्रवचनसार से अनुकरण किया गया है, सवस्त्रमुक्ति एवं स्त्रीमुक्ति के निषेध तथा स्त्री की औपचारिक दीक्षा के विषय में भी मूलाचार के कर्ता ने कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से दिशानिर्देश प्राप्त किया है तथा उनकी निरूपणशैली भी अपनायी है।
१२. मूलाचार को पूज्यपाद, यतिवृषभ और वीरसेन जैसे दिगम्बराचार्यों ने प्रमाण माना है, जब कि वे यापनीयों को जैनाभास और उनके द्वारा प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाओं को भी अपूज्य मानते थे।
१३. मूलाचार पर दिगम्बराचार्यों और दिगम्बर-पण्डितों ने ही टीकाएँ एवं भाषावचनिका लिखी हैं, किसी श्वेताम्बर या यापनीय आचार्य ने नहीं।
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