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अ० १६ / प्र०१
तत्त्वार्थसूत्र / २५५ यतः भाष्य में सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति एवं केवलिभुक्ति का प्रतिपादन है, अतः उसे स्वोपज्ञ अर्थात् सूत्रकार द्वारा ही रचित मान लेने पर तत्त्वार्थसूत्र भी श्वेताम्बरग्रन्थ सिद्ध हो जाता है। इसलिए श्वेताम्बर आचार्यों एवं विद्वानों ने सूत्रकार और भाष्यकार को एक ही व्यक्ति सिद्ध करने का प्रयास किया है। किन्तु वे एक ही व्यक्ति नहीं हैं, अपितु अलग-अलग व्यक्ति हैं, यह अनेक प्रमाणों से सिद्ध होता है। सर्वप्रथम उन्हीं प्रमाणों को प्रस्तुत किया जा रहा है।
सूत्र और भाष्य के भिन्नकर्तृत्व-साधक प्रमाण
सूत्र और भाष्य में सम्प्रदायभेद भाष्य (तत्त्वार्थाधिगमभाष्य) में अन्न-पान और रजोहरण के साथ पात्र और चीवर (वस्त्र) को भी धर्म का साधन (उपकरण) बतलाया गया है। अतः भाष्यकार के सम्प्रदाय के अनुसार नग्न मुनि के लिए नाग्न्य-परीषहजय संवर और निर्जरा का कारण नहीं हो सकता, अपितु नग्न मुनि वस्त्रपात्रादि संयमसाधनों के अभाव में संयमपालन में समर्थ न होने से असंयमी होकर आस्रव-बन्ध का पात्र होता है।
किन्तु तत्त्वार्थसूत्र में नाग्न्यपरीषहजय को संवर और निर्जरा का साधन बतलाया गया है, जो भाष्यकार के मत से बिलकुल उलटा है। इस तरह सूत्र और भाष्य में महान् साम्प्रदायिक भेद है। यह भेद प्रमाणित करता है कि तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता दिगम्बर थे, और भाष्यकार सर्वथा सचेलमार्गी श्वेताम्बर।।
दूसरी बात यह है कि भाष्यकार ने स्वलिङ्ग, अन्यलिङ्ग और गृहिलिङ्ग इन तीनों से मोक्ष की प्राप्ति सम्भव बतलाई है। किन्तु तत्त्वार्थसूत्र में ऐसे सूत्रों की भरमार है जिनसे अन्यलिंग, गृहिलिंग, सवस्त्रलिंग एवं स्त्रीशरीर से मुक्ति का निषेध होता है। यथा
३. "पादे पुंछति जेण तं पाउपुंछणं---रओहरणमित्यर्थः" = सन या ऊन से बनी हुई पैर पौंछने
की बृहदाकार कूची पादप्रोञ्छन या रजोहरण कहलाती है। (अभि.रा.को. / भा.६ /पृ. ४७०)। ४. "अन्नपानरजोहरणपात्रचीवरादीनां धर्मसाधनानामाश्रयस्य चोद्गमोत्पादनैषणादोषवर्जनमेषणा
समितिः।" तत्त्वार्थाधिगमभाष्य /९/५। ५. तत्त्वार्थसूत्र (श्वेताम्बर) ९/९। ६. "द्रव्यलिङ्गं त्रिविधं-स्वलिङ्गमन्यलिङ्गं गृहिलिङ्गमिति। तत्प्रति भाज्यम्। सर्वस्तु भावलिङ्गं
प्राप्तः सिध्यति।" तत्त्वार्थाधिगमभाष्य /१०/७/ पृ. ४४८ ।
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