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अ०१६ / प्र०१
तत्त्वार्थसूत्र / ३०९ और डॉ० साहब के द्वारा जो यह कहा गया है कि "जो परम्परा आगम को ही न मानती हो, उसको सूत्र में प्रयुक्त यथोक्त शब्द का वास्तविक तात्पर्य कैसे समझ में आयेगा?" इस विषय में मेरा निवेदन है कि सूत्रप्रयुक्त यथोक्त के अर्थ को समझने के लिए आगम को मानने की जरूरत नहीं है, सूत्रग्रन्थ के रचना-नियमों को जानने
और मानने की आवश्यकता है। सूत्रग्रन्थ का नियम है कि उसमें प्रयुक्त यथा, तथा, तद्, सः आदि शब्दों से उसी ग्रन्थ के पूर्वनिर्दिष्ट विषय सूचित किये जाते हैं, अन्य ग्रन्थ के नहीं। जैसे
'स यथानाम' (त.सू./ श्वे./८/२३) इस सूत्र में स (सः) शब्द 'विपाकोऽनुभावः' (त.सू. /श्वे.८/२२) इस पूर्व सूत्र में निर्दिष्ट अनुभाव अर्थ का सूचक है और यथा शब्द इसी अष्टम अध्याय के पूर्वसूत्रों में वर्णित ज्ञानावरणादि सभी कर्म प्रकृतियों के नाम के सादृश्य का सूचक है। इस तरह पूरे सूत्र का अर्थ है : ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि कर्मप्रकृतियों का अनुभाव (फल) उन प्रकृतियों का जैसा नाम है, वैसा (नाम के अनुसार) ही हुआ करता है। जैसे ज्ञानावरण ज्ञान को आवृत करता है और दर्शनावरण दर्शन को, दर्शनमोहनीय दृष्टि को मोहित करता है और चारित्रमोहनीय चारित्र को।
___ इसी प्रकार यथोक्तनिमित्त: में भी यथा शब्द तत्त्वार्थ के ही पूर्वसूत्र में वर्णित अवधिज्ञान की उत्पत्ति के निमित्त का सूचक है। किन्तु ऐसा कोई निमित्त, ग्रन्थ के किसी पूर्व सूत्र में वर्णित नहीं है, इसलिए 'यथोक्तनिमित्तः' प्रयोग असंगत है। यथोक्तनिमित्तः से किसी दूसरे ग्रन्थ में वर्णित अवधिज्ञान की उत्पत्ति का निमित्त सूचित नहीं हो सकता, क्योंकि उसे सूचित करनेवाला कोई शब्द सूत्र में प्रयुक्त नहीं है। यदि यथागमोक्तनिमित्तः ऐसा प्रयोग होता, तभी आगमोक्त तपरूप निमित्त अर्थ सूचित हो सकता था। किन्तु ऐसा प्रयोग न होने से यह अर्थ सूचित नहीं होता। अतः सिद्ध है कि यथोक्तनिमित्तः पद ग्रन्थ के ही पूर्वसूत्र में वर्णित निमित्त की सूचना देता है। किन्तु पूर्वसूत्र में ऐसे किसी निमित्त का वर्णन नहीं है, इससे साबित होता है कि उसका प्रयोग असंगत है, अवैज्ञानिक है।
उक्त प्रतिपक्षी विद्वान् लिखते हैं-"अवधिज्ञान के दो भेद हैं-भवप्रत्यय और निमित्तजन्य और यहाँ निमित्त शब्द का अर्थ प्रयत्न या तपसाधना है। इसलिए यथोक्तनिमित्तः इस सूत्र का तात्पर्य है क्षयोपशम हेतु की गई आगमोक्ततपसाधनाजन्य" (जै. ध. या. स. / पृ. २८४)।
अवधिज्ञान के भेद का निमित्तजन्य यह नामकरण अयुक्तिसंगत है, क्योंकि भवप्रत्यय अवधिज्ञान भी निमित्तजन्य है। प्रत्यय का अर्थ ही है निमित्त। भाष्यकार स्वयं कहते हैं-"भवप्रत्ययं भवहेतुकं भवनिमित्तिमित्यर्थः" (त.सू. / श्वे./ १ / २२ /
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