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अ०१५ / प्र०१
मूलाचार / २०५ नहीं किया जाता कि वह अपरिग्रहमहाव्रत के लिए आवश्यक है, अपितु इसलिए किया जाता है कि उनके लिए वस्त्रों की आवश्यकता नहीं रहती। स्त्रीनिर्वाणप्रकरण में आगे कहा गया हैं
अर्शो-भगन्दरादिषु गृहीतचीरो यतिन मुच्येत।
उपसर्गे वा चीरे ग्दादिः संन्यस्यते चात्ते॥ १७॥ अनुवाद-“(यदि वस्त्रत्याग मोक्ष के लिए अनिवार्य माना जाय तो) अर्श और भगन्दर जैसे रोगों में (जिनकल्पी) मुनि को भी व्रण ढंकने के लिए वस्त्रग्रहण करना पड़ता है, तब उसका भी मोक्ष असंभव हो जायेगा। इसी प्रकार यदि कोई विद्वेषी पुरुष जिनकल्पी मुनि पर उपसर्ग करने के लिए वस्त्र डाल दे, तब भी उसका मोक्ष संभव न होगा। (किन्तु आगम में इनका मोक्ष बतलाया गया है, अतः मोक्ष के लिए वस्त्रत्याग अनिवार्य नहीं है)।"
पाल्यकीर्ति शाकटायन ने निम्नलिखित कारिका में दिगम्बरपक्ष प्रस्तुत किया
उत्सङ्गमचेलत्वं नोच्येत तदन्यथा नरस्यापि।
आचेलक्या (क्यं) योग्यायोग्या सिद्धरदीक्ष्य इव ॥१८॥ __ अनुवाद-"यदि मोक्ष के लिए अचेलत्व अनिवार्य न होता, तो पुरुष के लिए भी अनिवार्य न बतलाया जाता। यतः स्त्री अचेलत्व के योग्य नहीं होती, इसलिए मोक्ष के भी योग्य नहीं होती, जैसे कोई भी अदीक्षायोग्य मनुष्य मोक्ष के योग्य नहीं होता।" पाल्यकीर्ति ने इसका खण्डन उक्त ग्रन्थ की निम्नलिखित कारिका में किया है
इति जिनकल्पादीनां युक्त्यानामयोग्य इति सिद्धेः।
स्यादष्ट-वर्ष-जातादिरयोग्योऽदीक्षणीय इव॥ १९॥ (यहाँ भी 'युक्त्यङ्गानाम्' के स्थान पर मुक्त्यङ्गानाम् होना चाहिए।)
अनुवाद-"यदि यह माना जाय कि जो मनुष्य जिनकल्प (अचेलत्व) आदि (जिनकल्प, यथालन्दविधि एवं परिहारविशुद्धि इन) मुक्ति की साधनभूत दीक्षाओं के अयोग्य होता है, वह मोक्ष के योग्य नहीं होता, तो आठ वर्ष की आयु से लेकर तीस वर्ष से कम आयु तक का पुरुष अदीक्षा-योग्य मनुष्य के समान मोक्ष के योग्य सिद्ध नहीं होगा",११ क्योंकि आगम में उसी पुरुष को उपर्युक्त जिनकल्पादि दीक्षाओं
11.A- “ This argument that one is unfit (for moksa) because one can not receive
the jinakalpa initiation (that requires nudity) can have undesirable conse
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