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२०६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१५/प्र०१ के योग्य बतलाया गया है, जो तीस वर्ष की आयु का हो अथवा जिसकी मुनिदीक्षा हुए उन्नीस वर्ष हो गये हों। किन्तु सभी जैनसम्प्रदाय यह मानते हैं कि मुक्ति के लिए तीस वर्ष की आयु होना आवश्यक नहीं है। ("गब्भादो णिक्खंतपढमसमयप्पहुडि अट्ठवस्सेसु गदेसु संजमग्गहणपाओग्गो होदि"= "गर्भ से निकलने के प्रथम समय से लेकर आठ वर्ष बीत जाने पर संयमग्रहण के योग्य होता है।" धवलाटीका / ष. खं. / पु.१० / ४, २, ४,५९ / पृ.२७८)। इससे सिद्ध है कि आठ वर्ष से लेकर तीसवर्ष से कम आयु तक के पुरुष स्थविरकल्प (वस्त्रपात्रादियुक्त लिंग) से मोक्ष प्राप्त करते
स्थविरकल्प (सवस्त्रमुक्तिमार्ग) का समर्थन करते हुए पाल्यकीर्ति आगे कहते
संवर-निर्झररूपो बहुप्रकारस्तपोविधि : शास्त्रे। .
योगचिकित्साविधिरिव कस्यापि कथञ्चिदुपकारी॥ २०॥ अनुवाद-"आगम में कर्मों के संवर और निर्जरा के लिए तप की अनेक विधियाँ बतलायी गयी हैं। जिस प्रकार योग और चिकित्सा की अनेक विधियाँ होती हैं और अलग-अलग रोगी के लिए अलग-अलग चिकित्साविधि उपकारी होती है, कोई एक ही चिकित्साविधि या औषधि सभी रोगियों के अनुकूल नहीं होती, इसी प्रकार कोई मुमुक्षु जिनकल्प की साधना के योग्य होता है और कोई स्थविरकल्प की। सभी के लिए कोई एक कल्प अनुकूल नहीं होता। इसलिए वस्त्रत्याग के बिना भी कोई स्त्री या पुरुष मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
यापनीय-आचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन के इन योगचिकित्साविधि-न्याय का प्रतिपादन करनेवाले वचनों से सिद्ध है कि यापनीयमत में मोक्ष के लिए अचेलत्व
quences (for the opponent) : according to this rule, an eitht-year-old boy and so forth (who is considered by tradition to be capable of attaining maksa) would be barred from attaining it merely because the mendicant rule prevents adoption of nudity (at that age).” Translation of the verse
19 by Padmanabh S. Jaini : Gender & Salvation, p. 64. B-" The three modes, namely the jinakalpa, the time-bound course
(yathālandavidhi), and the purificatory course (parihāravisuddhi), are con
sidered as leading to mokșa” Ibid. p. 64 - 65. C-" Only a man who is thirty years of age, or who has adopted mendicancy
for at least nineteen years previously, deserves to undertake (such) total renunciation (i.e., one of the three modes described obove. (?)” Ibid. p. 65.
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