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अ०१३ / प्र०२
भगवती-आराधना / ८३ इत्यादि सूत्र का निर्देश किया है, अतः वे यापनीय थे। यह निष्कर्ष सर्वथा भ्रान्तिपूर्ण हैं, क्योंकि
१. 'तालपलंबसुत्तम्मि' पद में 'सुत्त' शब्द से किसी अन्य सूत्र का उल्लेख नहीं किया गया है, अपितु 'तालपलंब' पद को ही देशामर्शक (उपलक्षक = एकदेश के कथन द्वारा सर्व का बोध करानेवाला) होने के कारण 'सूत्र' शब्द से अभिहित किया गया है, जैसे 'आचेलक्कं' को देशामर्शक होने से सूत्र संज्ञा दी गई है।०७
२. जैसे 'आचेलक्कं' शब्द जिस गाथा में है, वह गाथा देशामर्शक नहीं है, इसलिए शिवार्य ने उसे देशामर्शकसूत्र की संज्ञा नहीं दी, वैसे ही 'तालपलंब' शब्द जिस वाक्य या सूत्र में प्रयुक्त होता है, वह देशामर्शक नहीं होता, इसलिए उसकी देशामर्शकसूत्र संज्ञा नहीं हो सकती। अतः 'तालपलंबसुत्त' शब्द से बृहत्कल्प के पूर्वोक्त सूत्र का उल्लेख मानना युक्तिसंगत नहीं है।
३. दिगम्बराचार्य वीरसेन स्वामी ने भी धवलाटीका में 'तालपलंबसुत्त' का देशामर्शक सूत्र के दृष्टान्त के रूप में निर्देश किया है,१०८ किन्तु वे यापनीय नहीं थे। इसलिए उनके विषय में यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने 'सूत्र' शब्द से बृहत्कल्प के सूत्र का उल्लेख किया है। अतः यह निष्कर्ष गलत सिद्ध हो जाता है कि तालपलंबसुत्त शब्द का प्रयोग जहाँ किया गया है, वहाँ बृहत्कल्प के उक्त सूत्र का उल्लेख है, अत एव उल्लेखकर्ता यापनीय है।
४. भगवती-आराधना में यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों के प्रतिपादन से स्पष्ट है कि शिवार्य यापनीय नहीं थे। इससे सिद्ध होता है कि उन्होंने 'तालपलंबसुत्तम्मि' में बृहत्कल्प के सूत्र का उल्लेख नहीं किया।
५. 'तालप्रलम्ब' संस्कृत का और तालपलंब प्राकृत का शब्द है। उसका वाच्यार्थ है ताड़वृक्ष की जटा।०९ किन्तु उसका पूर्वपद 'ताल' सभी प्रकार की वनस्पति के उपलक्षक के रूप में भी लोकप्रसिद्ध रहा है। अतः 'तालप्रलम्ब' शब्द वनस्पतिमात्र को उपलक्षित करनेवाले एक मुहावरे या लोकप्रसिद्ध लाक्षणिक शब्द के रूप में रूढ़
१०७. "परिग्रहैकदेशामर्शकारिसूत्रमाचेलक्यमिति।" विजयोदयाटीका / भगवती-आराधना / गा.
१११७/ पृ.५७२। १०८. "कधमिदं सुत्तं मंगल-णिमित्त-हेउ-परिमाण-णाम-कत्ताराणं सकारणाणं परूवयं? ण,
तालपलंबसुत्तं व देसामासियत्तादो।" धवला / षटखण्डागम । पु.१ / १,१,१/ पृ. ९ तथा "तालपलंबसुत्तं व तस्स देसामासियत्तादो" धवला / षट्खण्डागम / पु.६ / १, ९-८, ५/
पृ. २३०। । १०९. सर मोनियर मोनियर विलियम्स : संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी।
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