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अ० १३ / प्र० १
भगवती - आराधना / ५९ भगवती-आराधना को यापनीयकृति कैसे कह सकते हैं? अतः रचनाकाल के आधार पर भी सिद्ध होता है कि भगवती आराधना यापनीयग्रन्थ नहीं है। हाँ, यदि बोटिककथा से सम्बद्ध शिवभूति और मथुरा के शिलालेख में उल्लिखित शिवभूति से शिवार्य का एकत्व माना जाय, तो अधिक से अधिक यह सम्भावना की जा सकती है कि शिवार्य पहले श्वेताम्बर रहे होंगे, पश्चात् दिगम्बर हो गये होंगे, उसके बाद उन्होंने भगवतीआराधना ग्रन्थ रचा होगा । अतः यह हर हालत में दिगम्बराचार्यकृत ग्रन्थ है, यापनीयाचार्यकृत कदापि नहीं ।
इस तरह हम देखते हैं कि भगवती - आराधना में वैकल्पिक सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, परतीर्थिकमुक्ति और केवलिभुक्ति, इन यापनीय मान्यताओं का निषेध करनेवाले सिद्धान्तों का प्रतिपादन है । यह बात विशेषरूप से ध्यान देने योग्य है कि उसमें न केवल इन मान्यताओं का विधान नहीं किया गया है, अपितु इनका निषेध करनेवाले सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भगवतीआराधना यापनीय - आचार्य द्वारा रचा गया ग्रन्थ नहीं है, क्योंकि कोई भी आचार्य अपने ग्रन्थ में अपनी ही मान्यताओं के विरुद्ध प्रतिपादन नहीं कर सकता। भगवती आराधना के उपर्युक्त सभी सिद्धान्त दिगम्बरमत के सिद्धान्त हैं, अतः यह दिगम्बराचार्य की ही कृति है। इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ में कुन्दकुन्द का अनुसरण किया गया है, इस पर सभी टीकाएँ दिगम्बरों ने ही लिखीं है तथा इसकी रचना यापनीयमत की उत्पत्ति के पूर्व हुई है, इन तथ्यों से भी इसी बात की पुष्टि होती है कि यह दिगम्बरपरम्परा का ही ग्रन्थ है ।
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