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द्वितीय प्रकरण
यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता
यतः भगवती - आराधना में प्रतिपादित यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों से उसका यापनीयग्रन्थ होना असिद्ध हो जाता है, अतः यापनीयपक्षधर विद्वानों ने उसे यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिए जो हेतु उपस्थित किये हैं, वे या तो असत्य हैं या हेत्वाभास हैं, यह सिद्ध होता है। उनमें से कौन सा हेतु असत्य है और कौन सा हेत्वाभास है, इसका दिग्दर्शन नीचे किया जा रहा है ।
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शिवार्य के गुरु दिगम्बर थे
यापनीयपक्ष
पं० नाथूराम जी प्रेमी जी का कथन है कि शिवार्य ने भगवती आराधना (गा. २१५९) में अपने तीन गुरुओं का उल्लेख किया है: आर्य जिननन्दगणी, आर्य सर्वगुप्तगणी और आर्य मित्रनन्दिगणी । इनके नाम दिगम्बरसम्प्रदाय की किसी पट्टावली या गुर्वावली में नहीं मिलते, अतः ये यापनीयपरम्परा के आचार्य रहे होंगे । फलस्वरूप इनके शिष्य शिवार्य भी यापनीय होंगे। इसलिए उनके द्वारा रचित भगवती आराधना भी यापनीयसम्प्रदाय का ग्रन्थ है। (जै.सा. इ./ प्र.सं./पृ. ५६-५७)।
दिगम्बरपक्ष
१. वट्टकेर, यतिवृषभ, समन्तभद्र, स्वामिकुमार, जोइंदुदेव जैसे दिगम्बराचार्यों के नाम भी दिगम्बर- पट्टावलियों में नहीं मिलते, फिर भी वे यापनीय नहीं थे। इसलिए दिगम्बर- पट्टावलियों में नाम न होना यापनीय होने का हेतु नहीं है।
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२. शिवार्य के गुरुओं के नाम यापनीय-पट्टावलियों में भी नहीं मिलते, अतः उपर्युक्त हेतु के अनुसार वे दिगम्बर सिद्ध होते हैं। इस तरह भी दिगम्बर पट्टावलियों में नाम का अभाव यापनीय होने का हेतु सिद्ध नहीं होता ।
३. भगवती - आराधना में यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों की उपलब्धि से उसका यापनीयग्रन्थ होना असिद्ध है, अतः उसके कर्त्ता और कर्त्ता के गुरुओं का भी यापनीय होना असिद्ध है।
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४. उक्त ग्रन्थ में दिगम्बरमत के सिद्धान्तों का प्रतिपादन है, फलस्वरूप उसके कर्त्ता और कर्त्ता के गुरुओं का भी दिगम्बराचार्य होना प्रमाणित होता है ।
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