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महाराजा कुमारपाल चौलुक्य
साधन माँगने पहुंचा । 'उदयन उस समय आचार्य हेमचन्द्र के पास बैठकर धर्म-चर्चा कर रहे थे । कुमारपाल वहाँ पौषधशाला में गया | उदयन से बातें हुई। हेमचन्द्राचार्य ने उसके लोकेतर लक्षण देख कर मन्त्री के आगे कहा कि यह बहुत बड़ा राजा होगा | कुमारपाल बहुत थक गया था । निराश भी बहुत हो गया था । हेमचन्द्रसूरि ने विश्वास दिलाकर कहा कि यदि वि० सं० १९९९ कार्तिक २ वदि २ को तुम को राज्य न मिलेगा तो मैं ज्योतिष और निमित्त शास्त्र को देखना छोड़ दूँगा ।
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१. यह मारवाड़ का जैन वणिक् था, पर बडा ही वीर, चतुर और प्रतिभासम्पन्न था । इसलिए गुजरात में आकर इस बहुत लक्ष्मी और कीर्ति प्राप्त की । यह सिद्धराज और कुमारपाल का मुख्य मन्त्री ( महामात्य ) हुआ | महाकवि वाग्भट इसी का पुत्र था ।
२. जिनमण्डनगणि ने कुमारपाल का राज्यारोहण-काल वि० सं० ११९९ मार्गशीर्ष कृष्णा ४ पुष्य नक्षत्र और मीन लग्न लिखा है । पं० शिवदत्तजी ने हेमचन्द्राचार्य के लेख में ११३९ मार्गशीर्ष कृष्णा १४ मालूम नहीं, किस आधार पर लिखा है । प्र० चि० ( पृ० १२५ ) मैं तो वि० सं० ११९९ कार्तिक कृष्णा २ का उल्लेख है ।
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३. तं पौषधशालामा गतमाकार्यं तत्रागते तस्मिन्नुदयनेन पृष्टः - श्रीहेमचन्द्राचार्यः प्राह-लोकोत्तराणि तदङ्गलक्षणानि वीक्ष्य सार्वभौमोऽयं नृपतिर्भावीत्यादिशत् ।.... सं० ११९९ कार्तिक वदि २ खौ हस्तनक्षत्रे यदि भवतः पट्टाभिषेको न भवति तदातः परं निमित्तावलोकसंन्यास इति पन्नामालिख्यैकं मन्त्रिणेऽपरं तस्मै समारोपतत् । प्र० चि० पृ० १२६ ।