________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
CINE
नाम रखा पेथड । यही इस चरित्र का नायक अमात्य पेथडकुमार के नाम से विख्यात हुआ । नान्दूरी के राजत्राम से देदाशाह विद्यापुर नगर में सकुटुम्ब चले गए। वहाँ उनका व्यापार जोरों से चलने लगा। आयु पूर्ण होने पर पेथड के माता और पिता का स्वर्गवास हुआ । अब सब गृहव्यवहार पेथड पर आया। वह संस्कारित हो चुका था । व्यापारिक धार्मिक व राजनीति विषय में उसके पिता ने उसे काफी अभ्यास कराकर हुशीआर कर दिया था । माता-पिता का वियोग उसको खूब खटका । वह व्यापार करता रहता था। पर हमेशा लक्ष्मी एक जगह स्थिर नहीं रहती, उसका नाम भी चञ्चला है । पेथड को व्यापार में भारी नुकसान होने से वह निर्धन हो गया। उसका वडा गृहखर्च चलाना भी उसको दुष्कर हो गया । जैसे सूर्य के हजार किरन भी अस्तावस्था में सूर्य की कांतिकीर्ति को नहीं टिका सकते हैं, उसी तरह पेथड की कीर्ति बुद्धि व मित्रादि लोग उसकी लक्ष्मी को नहीं टिका सके । वह खाने पीने तक का मौताज होगया ।
एक दिन विद्यापुर में तगच्छ के श्रीधर्मघोषसरि जैनाचार्य पधारे । उनका प्रवचन सुनने पेथड भी गया । वह आचार्य बडे विद्वान् और चमत्कारी थे ! उनके प्रवचन से कई लोगों ने नैतिक व्रत लिए । पेथड गरीब था, कुछ लोगों ने उपहासपूर्वक उसे परिग्रह-परिमाण (संतोषव्रत)
For Private and Personal Use Only