________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पाठ्यक्रम की सभालोचना और मत
१९३
कौमदी पूर्ण के बदले जैनेन्द्रप्रक्रिया के विकल्प में सिद्धान्तरत्निका संपूर्ण या हैमलघुप्रक्रिया सम्पूर्ण रखनी चाहिए ।
साहित्य वर्ष ३ में छन्दःकौमदी के स्थान पर 'वृत्तबोध'' नाम का ग्रन्थ रखना अच्छा है । यह श्रुतबोध जैसा छोटा ग्रन्थ है। इसके कर्ता स्थानकवासी साधु हैं।
२ "विशारदकक्षा" व्याकरण वर्ष १ में सिद्धान्तकोमदी के बदले हैमशब्दानुशासन लघुवृत्ति के पांच अध्याय विकल्प रूप में रखे जायं तो अच्छा हो। दूसरे वर्ष में सम्पूर्ण लघुवृत्ति होनी चाहिए।
विशारद वर्ष २ साहित्य में कीर्तिराज उपाध्यायकृत नेमनाथ चरित्र (महाकाव्य ) के आदि के ५ सर्ग विकल्प में रखे जायं । यह रघुवंश की पद्धति का उससे सुन्दर काव्य व्युत्पत्तिकारक है ।
__ तीसरे वर्ष व्याकरण में निर्धारित ग्रंथों के साथ न्यायसंग्रह सटीक रखना अच्छा है। परिभाषेन्दु शेखर पद्धति का यह ग्रन्थ पढने से सारा ब्याकरण खुल जाता
1-~-यह ग्रन्थ भैरुदान जी अगरचन्द जी सेठिया के यहां छपा है ।
२-यह ग्रन्थ दूसरी बार सेठ आणंदजी कल्याणजी की पेठीने अहमदाबाद से प्रकाशित किया है।
For Private and Personal Use Only