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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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हेमचन्द्राचार्य का प्रभाव चारों ओर फैलता जाता था । प्रजा में उनका खूब आदर तो था ही, पाटण आने के बाद अब ये अपनी योग्यता से सिद्धराज जयसिंह राजा और उनके अधिकारिओं में भी सम्मानित होचुके थे । बार बार राज दरवार में सिद्धराज इनको बहुमानपूर्वक आह्वान करता । ये अपनी विद्वत्ता और चारित्र से यहां देशी परदेशी विशेषज्ञों के दिलों को खूब वशवर्ती बनाते थे।
सिद्धराज की श्रद्धा
ऐसी बढती हुई कीर्ति को सहन नहीं कर सकने से 'कुछ लोगों ने सिद्ध राज के कानों में जाकर सच्ची झूठी भीडाते थे । परन्तु राजा विचक्षण था। आचार्य पर पूरा विश्वास रखने वाला था । जैसे और राजाओं के कानकच्चे होते ह वसा यह नहीं था। राजा उस बात की पूरी परीक्षा करता । जो कुछ आचार्य की निंदा सुनता, उसका खुलासा प्रेम- सभ्यतापूर्वक आचार्य से ही मांगता था । आचार्य कभी उलटा अनुचित किंवा अन्याय का आचरण या भाषण करते नहीं थे । जो बात होती, सरल दिल से राजा के आगे विशदरूप से व्यक्त करते थे। इसके बाद राजा समझ जातो कि साम्प्रदायिक मोह से ही ब्राह्मण
१ आभिगपुरोहित-वामाशि-देवबोध (विश्वेश्वर) आदि । देखो प्रभावकचरित्र, प्रबन्धविन्तामणि और कुमारपालप्रबन्ध ।
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