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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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'श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन' नाम का व्याकरण' बनाया । राजा ने इसकी परीक्षा कराई और बडे जुलुस से हाथी पर रखकर राजमहल में व्याकरणग्रन्थ लाया गया । अपने राज्य के अतिरिक्त और भी कई देशों में इस व्याकरण का काफी प्रचार करवाया । यह व्याकरण अनेक विशेषताओं को रखता है, पर यहाँ प्रस्तुत न होने से हम कुछ नहीं लिखेंगे' । इस व्याकरण को ३५ पद्यात्मक एक प्रशस्ति हेमचन्द्राचार्य ने बनाई, जिसमें चौलुक्य भूपालों का उदात्त वर्णन है ।
सोमेश्वर और हेमचन्द्र
सिद्धराज की माता 'मयणल्लदेवी' की सोमेश्वर महादेव पर अतूट भक्ति थी। जब वह छोटा था, तब माता के साथ उसने एक बार ठाठ से यात्रा की थी।
१. देखो प्रभावकचरित्र में हेमचन्द्र पद्य ७४ से ११५ तक ।
२. इस व्याकरण के विषय में देखो हमारी द्वारा सम्पादित 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' व्याकरण लघुवृत्ति की प्रस्तावना, डां० बुहलर का 'धिं लाइफ आफ धि जैन मंक हेमचन्द्र' और 'गुजरातन प्रधान व्याकर ग' पुरातत्त्व वर्ष ४ अङ्क १-२ ।
३. यह सम्पूर्ण प्रशस्ति सिद्भहेमचन्द्र व्याकरण की हमारी सम्पादित ई० सन् १९:३४ की आवृत्ति के परिशिष्ठ में संगृहीत की गई है ।
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