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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
सौराष्ट्र और मालवा पर विजय पाने के पश्चात् दूसरी वार भी सिद्धराज बडे ठाठ से सोमेश्वर (प्रभासपाटण) यात्रार्थ गया था । उसमें उसने आचार्य हेमचन्द्र को भी साग्रह निमन्त्रण दिया था। आचार्य पैदल चलकर नियत समय पर वहाँ पहुँच गये। राजा बहुत प्रसन्न हुआ। एक जैन आचार्य शैवतीर्थ में आवे, मन्दिर में आकर सभ्योचित वर्ताव करे, यह उस समय के भारत के लिए मुश्किल और आश्चर्यकारी भी था। इससे राजा पर आचार्य की परमतसहिष्णुता का और भी अच्छा प्रभाव पड़ा।
दूसरी बार कुमारपाल के समय में सोमनाथ महादेव का मन्दिर जीर्ण शीर्ण और भञ्जन प्रायः हुआ था । एक बार कुमारपाल ने अपनी कीर्ति चिरकाल स्थायी रखने का उपाय आचार्य
१. यह यात्रा कब हुई थी, इस विषय में देखो 'सिद्धहेमचन्द्र व्याकरण रचना संवत् ' निबंध बुद्धिप्रकाश सन् १९३५ मार्च का अङ्क ।
२. 'मीराते अहमदी' और 'आईन अकबरी' प्रभृति के मुसलमान लेखकों के आधार से फार्बस साहब का मत है कि यवनों के आक्रमण से उस समय सोमेश्वर का मन्दिर शीर्ण हो गया था, इसीलिए, कुमारपाल को इसका पुनरुद्धार करवाना पडा ।
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