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आचार्य हेम चन्द्रसूरि और उनका साहित्य
का कोई पुत्र न था। इसीलिए त्रिभुवनपाल के पुत्र इस कुमारपाल को राज्य मिला। चौदहवीं शताब्दी के और उसके पश्चात् कालीन ग्रंथों से ज्ञात होता है कि कुमारपाल को सिद्धराज कडक दृष्टि से देखता था । उसको मारने का प्रयत्न करता था। कुमारपाल अपने प्राणों को बचाने के लिए गुप्त रीत्या दौडादौड करता था । ऐसे मौके पर आचार्य हेमचन्द्र ने चतुराई से कई वार कुमारके प्राणों की रक्षा की-करवाई थी। उसके लक्षणों को देखकर आचार्य ने कहा कि "तुम वि० सं० ११९९ में अवश्य राजा हो जाओगे ।" आचार्य ज्योतिष के धुरंधर ज्ञाता थे। यह बात सत्य हुई । वह राज्य का पूर्ण भोक्ता हो गया।
थोडे समय के बाद आचार्य ने उदयन मन्त्री से पूछा कि-"राजा हमको याद करते हैं या नहीं ?" 'उदयन' कुमारपाल का मन्त्री था। उसने कहा नहीं करते हैं ?' आचार्य अपने पूर्ण भक्त उदयन मन्त्री से कहा कि तुम राजा को पूर्वकृत उपकारों-प्रसंगों का स्मरण कराओ। उसने पूर्वकृत उपकारों का स्मरण कराया । राजा प्रवुद्ध हुआ । वडी कृतज्ञता से उसने आचार्य को आमन्त्रण दिया। आचार्य का उपदेश सुनकर वह प्रसन्न हुआ और
१. देखो प्रबन्धचिन्तामणि ।
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