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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
धर्म के किए । जितनी श्रद्धा चंद्रगुप्त को चाणक्य पर थी, उससे अधिक कुमारपाल की हेमचन्द्राचार्य पर थी। कुमारपाल की प्रार्थना से उसके राज्य में हेमचंद्राचार्य ने राजा के लिए 'योग शास्त्र' और त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र ( ३६००० श्लोक का ) बनाया । आचार्य के उपदेश से राजा ने मांस आदि व्यसन छोडे ।
प्रजाहित के कार्य आचार्य हेमचंद्र ने सिद्धराज और कुमारपाल के पास प्रजोपयोगी कई कार्य करवाए । निःसन्तान का धन पहले राज्य में ले लिया जाता था। इसकी प्रत्येक वर्ष की ७२ लाख को आय होती थी। आचार्य के प्रभावपूर्ण उपदेश से कुमारपाल ने हमेशा के लिए अपने राज्य में यह रिवाज तोड दिया याने नि.संतान का धन लेना बन्द कर दिया। कई ग्रन्थकारों ने राजा की इस उदारता के लिए भूरि २ प्रशंसा की है। प्रजा के ऊपर टेक्स कम करवा दिये। कई लोकोपयोगी स्थानों के अतिरिक्त हेमचन्द्र के उपदेश से सिद्धराज ने सिद्धपुर आदि में जैन मन्दिर बनवाए । और कुमारपाल ने त्रिभुवन विहार, कुमारविहार, भूपकविहार, करंबविहार, दीक्षाविहार, झोलिका विहार आदि कई मन्दिर बनवाए । हेमचन्द्र ने अनेक विद्वान् . कवि, पण्डित, कलाविद और गरीबों को राजा और अधिकारियों के द्वारा लाखों रुपयों का दान करवाया । (जब खुद स्वयं आचार्य एक कोडी भी नहीं लेते थे और न रखते थे ।)
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