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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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कहने लगा-"धीरे २ मैं आपकी समग्र आज्ञाओं का पालन करूँगा' । आचार्य की निष्पक्ष गंभीर उपदेश धारा समय समय पर बहती रही और कुमारपाल का कृतज्ञहृदय अधिकाधिक भक्तिपूर्ण-आर्द्र हो गया । वह हरएक जटिल प्रश्नों का समाधान माँगता रहा। आचार्य समाधान करते रहे। आचार्य ने बड़ी सावधानी से उत्तम सलाहउपदेशों द्वारा कुमारपाल को अपना अनन्य भक्त बना ही लिया। जैनसाधु का इतना प्रभाव शैवधर्मी सिद्धराज
और कुमारपाल पर पडा, इसका प्रधान कारण हेरचंद्राचार्य का तपस्तेज और निःस्पृहवृत्ति था। इतना सम्बन्ध होने पर भी हेमचंद्र ने राजा के पास एक पाई भी या कपडा वगैरह कोई चीज अपने लिए न मांगी और न ली । कुमारपाल राजा ने आचार्य के उपदेश से वि० सं० १२१६ मार्गशीर्ष शुक्ला २ को सर्वसमक्ष विधिपूर्वक जैनधर्म स्वीकार किया और आदर्श गृहस्थ के योग्य १२ व्रत लिए । कुमारपाल ने आचार्य के कहने से सैकड़ों कार्य प्रजा व
१. भवदुक्तं करिष्येऽहं सर्वमेव शनैः शनैः ।
कामयेऽहं पर सङ्गं निधेरिव तव प्रभो ॥ कुमारपाल प्रतिबोध में लिखा है कि कुमारपाल को धर्म का सचा रहस्य जानने की इच्छा हुई । वागभट ( उदयन के पुत्र) मन्त्री ने राजा के आगे हेमचन्द्र का परिचय कराया। बाद हेमचन्द्र और कुमारपाल की मुलाकात हुई ।
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