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निर्वाण
निर्वाण हेमचन्द्राचार्य का चरित्र इतना विशाल एवं गंभीर है कि जितना लिखे इतना लिख सकते हैं । इनकी जीवनी और साहित्य के विषय में तो बडे २ ग्रन्थ लिखें तो पर्याप्त हो सकता है। इन्होंने अपने सर्वतोगामी शक्तिज्योति से राजा और प्रजा का कल्याण-अभ्युदय किया । जीवन को कृतार्थ-यशस्वी बनाया । आखरी समय में इन्होंने प्रवृत्तिमार्ग को बहुत कम करके, आत्मसाधनयोग के अनुशोलन पर विशेषरीति से ध्यान दिया था । योग विषय में इनकी प्रवीणता इनके योगशास्त्रादि ग्रन्थ से जाहिर होती है । अपने शिष्यों पर कार्यभार छोड कर आत्मध्यान करते हुए इन्होंने वि० सं० १२२९ को अपना भौतिक देह छोडा और प्रकाशमय देवशरीर प्राप्त किया।
लाखों विशिष्ट और सामान्य लोगों के हृदय के हार पूज्य आचार्य मनुष्य लोक को छोड कर चले जाने से पाटण आदि की प्रजा ने दुःख के आंसु बहाए । राज्य के अधिकारी और प्रजाजनों ने इनके भौतिक शरीर का अग्निदाह करने के पश्चात् उसकी रक्षा श्रद्धापूर्णभाव से ग्रहण की। कहा जाता है कि इतने लोगों ने वहाँ से रक्षा उठाई कि जिससे चितास्थान पर एक बड़ा खड्डा हो गया। जिसकी प्रसिद्धि 'हेमखाडो' के नाम से हुई।
भारत को ऐसे ज्ञानी-योगी ज्योतिर्धर आचार्य की आवश्यकता है।
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