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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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उत्तर दिया कि 'भोः श्वेतं तर्क, पीता हारिद्रा' अर्थात् छास तो सुफेद होती है, हलदी पीली होती है' हेमचन्द्र की प्रतिभा से सभी सभासद् चमत्कृत हुए | कई कविओं ने इनको' बुद्धि में बृहस्पति और सरस्वती लिखा है । इसीलिए ये उस जमाने से 'कलिकाल सर्वज्ञ' पद से भूषित हुए हैं ।
हेमचन्द्र के शिष्य
मीठे वृक्ष के फल प्रायः मोठे निकलते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ज्ञानयोगी प्रजाहितार्थ जीवन बिताने वाले विशिष्ट आचार्य थे, अतः इन्होंने शिष्य बनाने के लिए खास ध्यान नहीं दिया। सिंह का एक ही बच्चा उसकी कीर्त्ति के लिए काफी होता है। हेमाचार्य जैसे ज्ञानयोगीओं के लिए 'वसुधैव कुटुम्बकम्' न्याय से जगत् ही शिष्य था । इसीलिए हेमचन्द्र के साधु शिष्य गिनती में अधिक नहीं थे । परन्तु जो थे वे अपने २ विषय में सिद्धहस्त विद्वान् थे । 'रामचन्द्रसूरि " इनके पट्टधर मुख्य शिष्य थे । वे और गुणचन्द्रसूरि नाट्यशास्त्र के पारंगत पंडित महाकवि और
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१. मल्लिषेणसूरिप्रभृत्ति ने स्याद्वादमंजरी आदि में ।
२. इनके विषय में विस्तृत परिचय 'नलविलास नाटक' की प्रस्तावना में देखो । प्रस्तुत ग्रन्थ और नाट्यदर्पण ( सवृत्ति ) ये दोनों इन्हीं के ग्रन्थ हैं (नाट्यदर्पण के गुणचन्द्र भी सह लेखक हैं) ये ग्रंथ गायकवाड ओरियन्टल सीरिज बडौदा में छपे हैं ।