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आचार्य हेमचन्द्रसूर और उनका साहित्य
नहीं थी. परन्तु नवीनयुग की प्रवर्तक थी । इसीलिए इन्होंने अपनी विद्वत्ता, कला और आत्मज्योति से अपने जमाने में बहुत कुछ सुधार किए हैं । विद्वान् लोग इनके युग को इनके नाम से 'हेमयुग' नाम से पहचानते हैं । पुरातत्त्वज्ञ श्रीमान् दुर्गाशंकर शास्त्री जो कहते है "हेमयुग के युगनेता तो मात्र हेमचन्द्राचार्य ही थे । गुजरात की प्रतिष्ठा में तो साहित्य विषय में इन्हीं से वृद्धि हुई है" ।
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इनके साहित्य में काव्य में सरलता मधुरता एवं विषयगम्भीरता स्थान २ पर झलकती हैं। इनके साहित्य की आलोचना से एक बडा ग्रंथ भर जावे । आलोचना करने में दीर्घ अभ्यास, परीक्षण शक्ति और प्रतिभाधन की प्रचुर आवश्यकता है । हम यहाँ पर गौरवभय से इन साहित्य की आलोचना के बड़े कार्य को नहीं करेंगे । इनके उपलब्ध ग्रन्थों की सूची मात्र देकर संतोष मानेंगे |
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