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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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नए जैन जैन धर्म' यह किसी जाति विशेष का नहीं है। जो राग द्वेष जितने वाले को माने, पूजे और स्वयं भी यथाशक्य प्रयत्न करे वह हर कोई जाति व देश का मनुष्य जैन हो सकता है। ऐसा जैनसिद्धान्त, पहले के जैन मानते थे। कहा जाता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने, जो लोग जैन होना अपने दिल से चाहते थे, उनको शुद्धि करके जैन बनाया था और उनके लिए व्यवहार आजीविका की व्यवस्था करवा दी थी। ऐसे ३३००० घरों को जैन बनाया था।
बुद्धिमत्ता १-आचार्य की बुद्धि की तीक्ष्णता के कई प्रसंग इस में आचुके हैं । इन्होंने लाखों श्लोकों की रचना की । एक वार किसी ने सिद्धराज से कहा कि जैनलोग सूर्य को नहीं पूजते हैं । उनके उतर में आचार्य ने राजा से कहा:
अधाम धाम धामैव वयमेव हृदि स्थितम्, . .. यस्थास्त व्यसने प्राप्ते त्यजामो भोजनादिकम् । ..
प्रबन्धचिन्तामणि ।
१. अननदेसजाया अन्नन्नाहारवड्डियसरीरा ।
जिणसासगं पवन्ना सव्वे ते बन्धवा भणिआ ॥ उपदेशतरङ्गिणी २. देखो 'जैनयुग' पु. ४ अङ्क३-४ में ।
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