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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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सोमनाथ की यात्रा सिद्धराज सोमेश्वर महादेव का भक्त था। उसकी माता मयणल्लदेवी तो इस तीर्थ पर अत्यधिक भक्ति रखती थी। माता के आग्रह से एक बडो यात्रा तो सिद्धराज ने बाल्यावस्था में हो की थी। मौराष्ट्र, मालवा पर विजय पाने के पश्चात् दूसरी बार सिद्धराज ने बडे समारोह से सोमेश्वर की यात्रा की थी। जिसका उल्लेख तत्कालीन 'द्वयाश्रयकाव्य में भी विस्तार से है ।
महा व्याकरण की रचना लोकोपकार और राज्य प्रतिष्ठा से निवृत्त होने के बाद हेमचन्द्राचार्य का ध्यान साहित्य रचना की ओर अत्यधिक आकृष्ट हुआ। विशिष्ठ प्रतिभाशाली पुरुष साहित्य का निर्माण किये बिना कैसे रह सकते हैं ? साहित्य त्रिकालावच्छिन्न स्थायी धन है । साहित्य ही मनुष्य को यशःकाया से सदाजीवी बनाता है ।
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५ देखो प्रवन्धचिन्तामणि । यह यात्रा कब हुई है इस विषय में हमने 'सिद्भहेमचन्द्र व्याकरण नो रचना संवत्' नामके निबन्ध में विचार किया है । देखो बुद्रिप्रकाश ।
२ द्वयाश्रयकाव्य को आचार्य हेमचन्द्र ने ही बनाया है। इसमें चौलुक्यवंश का मूलराज से कुमारपाल राजा तक का इतिवृत्त है । पन्दरहवें सर्ग में सोभेश्वरयात्रा का वर्णन है । प्राकृत द्वयाश्रय भी इनका बनाया हुआ है।
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