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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
आदि लोग हेमचन्द्र की कीर्ति उन्नति को देखना नहीं चाहते हैं, इसीलिए द्वेषवश झूठी प्रचार काय करते हैं । सिद्धराज स्वयं शैवधर्म का उपासक था । हेमचन्द्राचार्य जैनधर्म के आचार्य थे। तो भी इनपर इनके गुणों से वह शिष्यवर मुग्ध था। प्रारम्भ में वह जैनधर्म के विषय में विपरीत आज्ञाकारक हुआ हो, ऐसा संभव होता है, परन्तु आचार्य हेमचन्द्र के समागम से सिद्धराज जैनधर्म के प्रति भक्ति-श्रद्वा रखने लगा था। निश्चित प्रमाणों से ज्ञात होता है सिद्धराज ने पिछली जिन्दगी में कई जैनमन्दिर बन्धवाए हैं, प्रतिष्ठा करवाई है, पूजा की है और जैनतीर्थ आदि के लिए बडे बडे दान दिए हैं। और ब्राह्मणों को भी जैनचैत्य के मानने वाले बनाए हैं ।
१ प्रबन्धचिन्तामणि ।
२ दागव्यायनिकौशलयायनिच्छाग्यायनीन् पथि । स्थापयन् विदधे चैत्यं तत्रैवान्त्यस्य सोऽहंतः ॥
द्वयायकाव्य ११-१६
स वाध्ययिणिकार्मायायणिका यणीनपि । संबोध्याऽऽहतसंघस्य भक्त्याकारयदर्हणाम् ॥१५-१७॥ प्रविश्य चैत्यगमऽथ गोमयायितकुंकुमे । तुलयत हिमवान् भोक्तुभव्यैः सोऽस्नपजिनम् ॥१५.७५॥ भोक्तृभिः सह धर्मर्जिलपन् शत्रुञ्जयं ययौ ॥१५-८९|| देखो प्रभावकचरित्र में देवसूरि और हेमचन्द्रचरित्र ।
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