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शिक्षा और परीक्षा
विहार और नवद्वीप के विद्यापीठ तथा गुरुकुल उल्लखनीय हैं। इनमें दस दस हजार तक विविध विद्याओं, कलाओं. आगमों का अध्ययन कर अद्वितीय विद्वान् होते थे पन्द्रह सौ तक अध्यापक छात्रों को ज्ञान दान देते थे इन विद्यापीठों से हो महावैयाकरण पाणिनि, रघुनाथशिरा मणि, सार्वभौम वासुदेव, महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य प्रसिद्ध-प्रसिद्ध विद्वान् निकले थे । इन विद्यापीठों में समस्त दर्शनों, कलाओं और उद्योगों की पूर्ण शिक्षा, स्वल्प सयम में और थोडे खर्च से ही, मिलती थी । श्रीयुत शांतिलाल त्रिवेदी का कहना है कि, "उस वक्त सबसे बड़े राज-पुत्र से भी, विद्यापीठ के समग्र पाठ्य ग्रन्थ पढाने और खान पान, वस्त्र आदि का खर्च सिर्फ एक हजार रुपया लिया जाता था । उस समय के राजा अपना अलीम धनव्यय कर इन विद्यापीठों की हर प्रकार की सहायता करते थे । एक राजा ने एकपीठ के निर्वाह के लिए सौ गांव भेंट दिये, ऐसा उल्लेख भी मिलता है ।" ।
ये विद्यापीठ आजकल की प्रसिद्धतम आक्सफोर्ड और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटियों से कम विषयों की शिक्षा नहीं देते थे। चरित्र-संगठन ओर आरोग्यविकास के जो ऊँचे संस्कार मिलते थे, उनका शतांश भो किसी वातमानिक संस्था में नहीं मिल सकते । सचमुच ही उस समय के भारतीय लोग बहुत भाग्यशाली थे । हमें उन लोगों के भाग्य पर ईर्ष्या होनी चाहिये ।
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