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और उनका साहि
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जन नेताओं के बीच गुरु को धर्म प्रचार के लिये अपने उत्तम प्यारे पुत्र का दान माता ने दिया। गुरु वहाँ से विहार कर कर्णावती गए। कर्णावती से स्तम्भनतीर्थ (खभात Camby) जाकर वहाँ पर चंगदेव को विक्रम सं. १९५४ माघ शुक्ला १४ शनिवार के दिन सिद्धि योग में जैन साधु की दीक्षा दी । दीक्षा संस्कार के समय 'चंगदेव' का नाम 'सोमचन्द्र' रक्खा गया। यही सोमचन्द्र बारह वर्ष के पश्चात् 'हेमचन्द्राचार्य' के नाम से पहचाना जायगा ।
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सोमचन्द्र (हेमचन्द्र ) में कुशाग्रबुद्धि, प्रबलप्रताप और उच्च गुण तो सत्ता में थे ही । उसमें प्रकाण्ड विद्वान् और तपस्वी गुरु का सान्निध्य मिला । इस संयोग से इनका चारित्र और विद्याध्ययन व्यवस्थित और उत्तम प्रकार का हुआ थोडे ही वर्षों में सोमचन्द्र व्याकरण, छन्द, काव्य, कौश, अलंकार, दर्शन, ज्योतिष, योग एवं तंत्र मंत्र शास्त्रों के रहस्य को समझने वाले पारगामी हो गये । ब्रह्मचर्य
में बस.ई थी । वर्तमान में जहां नगी होने का अनुमान ए० के० पाटनगर' के लेखक श्रीरत्नमणिराव का कर्णावती एक ही गांव के नाम हैं, और है वहीं पर पहले था । कर्णावती के 'कर्मसुन्दरी नाटिका लिखी है ।
१ – यह 'कर्णावती' कर्णराजा ने विक्रम की बारहवीं शताब्दी अहमदाबाद है उसके पास यह फास साहब का है । 'गुजरातनुं
मत है कि, आशापल्ली और यह नगर जहां अहमदाबाद विषय में विलहूण कवि ने
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