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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
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आचार्य हेमचन्द्र एक राज्यमान्य गुरु होने पर भी इन्होंने उदारवृत्ति से दूसरों का कई बार सहाय-भला किया है । इसके कई दृष्टान्त प्राचीन ग्रंथों में भरे पडे
निष्पक्ष धर्मोपदेश
सिद्धराज जयसिंह विद्वान् तथा धर्मजिज्ञासु था । जगत् में अनेक धर्म मतमतान्तरों की क्रिया तथा विचारों के भेद से वह चकरा गया था । 'सच्चा धर्म कौन है ?' इसका निर्णय करने की उसको बडी उत्कण्ठा रहा करती थी। एक दिन इसने हेमचन्द्राचार्य से पूछा कि-'महाराज ! दुनिया में सैकड़ों धर्म हैं, सभी धर्मवाले अपने धर्म को सनातन और उत्तम बतलाते हैं और दूसरों को अधर्म नया बताते हैं । इससे मनुष्य सन्देह में पड़ जाता है कि दुख से मुक्ति करानेवाला मच्चा धर्म कौन सा है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुये आचार्य ने पुराणोक्त शंख की कथा राजा से कही' ।
'शंख' नाम का एक शेठ था। उसने स्त्री पर नाराज होकर दूसरी स्त्री से विवाह किया। वह नवोढा के वश होकर पहली पत्नी को भूल गया। पहली पत्नी यशोमती ने पति को वश करने की एक औषधि किसी
१ देखो कुमारपालप्रबन्ध ।
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