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आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
था । वह कर्णदेव का पुत्र था । उसने वि० सं० ११५० से १९९९ तक राज्य किया। वह विद्वान, विद्याका उत्तेजक एवं प्रतापी था । उसकी राजधानी पाटण-उत्तर गुजरात के अणिहिलपुर पाटण में थी ।
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मध्यकाल में पाटण सोलह कलाओं से विकसित हो चुका था। वहां नामी विद्वान् कवि और व्यापारी रहते थे । वहां सैकडों धनकुबेर रहते थे। पूर्व और पश्चिम की तमाम चीजें वहां लब्ध होती थी । २
खभात पर हेमचन्द्राचार्य का बडा ही प्रेम और प्रभाव था। अभी तक इन के जीवन का बहुत समय खंभात में व्यतीत हुआ था और दीक्षा भी वहीं हुई थी ।. अतः वे इसको जन्मभूमि के तुल्य मानते थे । खंभात की प्रजा भी हेमचन्द्राचार्य के गुणों और विद्वत्ताशक्ति पर मुग्ध थी । उपदेश और आत्मज्योति से हेमचन्द्र ने खंभात को प्रकाश- चैतन्य युक्त बना लिया था । अपनी भावना को फलवती करने के लिए हेमेचन्द्राचार्य ने खंभात से पाटण के प्रति विहार ( पैदल प्रयाण ) किया । वियुक्त होती हुई खंभात की प्रजा ने प्रेमाश्रु बहाए |
१ सिद्धराज के विषय में देखो हमारा 'सिद्धराजे शुं कर्यु' नाम का निबन्ध, जो गुजरात के प्रसिद्ध मासिक 'शारदा' में छपा है ।
२ देखो टॉडराजस्थान |
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