________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य
यह प्रसंग प्रभावक चरित्र के मत से वि. स. १९६६ वैशाख शुक्ला तृतीया को बना था । आचार्य होने के बाद सोमचंद्र का नाम बदल कर हेमचंद्र रक्खा गया, अतः इसी नाम से प्रसिद्धि हुई है ।
२२३
उस प्रसंग पर हेमचन्द्राचार्य की माता 'पाहिणी' जैन दीक्षा लेकर साध्वी हुई । और उसको प्रवर्त्तिनी (सब साध्वीओं में मुख्या) बना ली। जैनधर्म में त्याग की प्रबलता है । पुरुष की तरह स्त्रियाँ भी वैराग्य होने पर संयम संन्यास लेकर परमपद को पा सकती है। ऐसा शुरू से अब तक जैन सिद्धान्त रहा है ।
For Private and Personal Use Only
आचार्य की प्रवृत्ति
आचार्य होना समाज और धर्म का नेता-रक्षक होना है । उस पर जवाबदारी बहुत बढ जाती है । औरों से नेता का कर्तव्यमार्ग बडा हो विकट होता है । इस बात को हेमचन्द्र पूरी तौर से समझते थे। इन्होंने देश, साहित्य और धर्मकी सेवा करने का निश्चय किया । यह कार्य शक्तिसम्पन्न राजा के सहयोग से शीघ्र सम्पन्न
संयोग
हो सकता है । योग्य नरपति और मुनिपति का हो जाय तो जगत् को कई लाभ हो सकते हैं । यह समझ कर हेमचन्द्राचार्य ने तत्कालीन गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह को पसन्द किया ।
सिद्धराज और पाटण
सिद्धराज चौलुक्यवंशीय गुजरात का उस समय सम्राट्