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शिक्षा और परीक्षा
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प्रासङ्गिक लाभ समझते थे । यद्यपि परीक्षा में सौ में सौ मार्क पाने की योग्यता उनमें रहती थी । वर्तमान समयमें सौमें से ३० मार्क मिलने पर परीक्षा में छात्र उत्तीर्ण समझा जाता है यानी पहले से ही छात्र में प्रतिशत ७० मूर्खता समझी जाती है ! इतना होने पर भी सौमें से करीब ४५ छात्र ही उत्तीर्ण हो सकते हैं ! इससे पाठक स्वयम् विचार कर सकते हैं कि, वर्तमान परीक्षाओं से छात्रों की कितनी योग्यता बढती है। छात्रों को परीक्षा में पास होने की जितनी चिन्ता होती है, उतनी ठोस ज्ञान प्राप्त करने की नहीं । बहुत से छात्र तो पिछले वर्षों के अनेक प्रश्नपत्र पढकर और कुछ ऊपरि तैयारी कर परीक्षा में बैठ जाते; और, येन केन प्रकारेण सौमें से ३३ मार्क प्राप्त कर उत्तीर्ण होने पर अपने को महान् विद्वान् समझ बैठते ह ! कुछ परीक्षाकाल के नजदीक आने पर तीन या चार महीनों में महाभारत, रामायण या कल्पसूत्र के पारायण के समान इधर उधर से ग्रन्थों को पूरा कर परीक्षामें बैठ जाते हैं ! उन्हें अपने ग्रन्थों में किसी बात की भी शंका उत्पन्न नहीं होती ! समाधान की तो बात ही क्या ? मानों वे मर्वज्ञ हैं। मेरा तो दृढ मन्तव्य है कि. जो छात्र अपने पाठ्य ग्रन्थ में बिल्कुल शंका या प्रश्न नहीं करता है, वह या तो ग्रन्थ को समझ ही नहीं सका या समझने की कोशिश ही नहीं की । उसे शंका होने का मौका कहां से मिले ? बडे और गम्भीर ग्रंथ जो कि, छ छ महीनों में पूरे किए जा सकते हैं, एक या दो महीने में परीक्षा में पास होने के लिए ही पूरे
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