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शिक्षा और परीक्षा
तो इसका परिणाम चोरी, छल, कपट और घात करने तक का हो जाता है ! कितने ही शिक्षित तो बूट पर पालिश करके गुजारा करते हैं !
___वर्तमान शिक्षा के प्रश्न पर हमें बहुत विचार करने की जरूरत है । क्या वर्तमान शिक्षा में दोष है, उसकी पद्धति में दोष है या उसके दाताओं में ? रातदिन मेहनत कर शरीर को नष्ट करते हुए-आंख और मनकी शक्तियों को कुण्ठित करते हुए, और भारी धनव्यय करते हुए भी छात्रों को शिक्षा का परिणाम दुःख, दरिद्रता, रोग और अशान्ति ही मिलता है ! इससे स्पष्ट है कि, वातमानिक शिक्षा की पद्धति हमारे भारतवर्षके लिए कोई लाभप्रद नहीं दीखती ।
परीक्षाएँ कई प्रकार की होती है- सत्य की, तपकी, बलकी, धैर्यकी, भक्ति की, शीलकी, कलाकी ध्यानकी एवम् कवित्व वगैरह शक्तियों की। इनमें शिक्षाको परीक्षा भी एक है । तत्तद् विषयों की योग्यता का माप निकालना परीक्षा का उद्देश्य है । पाठ्य ज्ञान की इयत्ता का पता निकालने का साधन परीक्षा है । यह परीक्षा पहले कैसी थी ? अब कैसी है ? होनी कसी चाहिए? यह सब बातें विचारणीय हैं।
शिक्षा बहुत पुराने काल से है। उसका परीक्षा समय भी उतने ही काल से मानना चाहिए । माध्यमिक
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