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जैन सम ज और पाठ्यक्रम का सम्बन्ध
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जैन समाज का पाठ्यक्रम
जैन समाज अभी इतना भाग्यशाली कहां कि. उसका सम्पूर्णतया व्यावहारिक और आध्यात्मिक विषय में प्रवीण बनाने वाला उसके लिए सर्वाङ्गसुन्दर पाठ्यक्रम बने और हर साल इसपर गम्भीर विचार पूर्वक आवश्य कतानुसार परिवर्तन हुआ करे ! तौभी मुझे जान कर खुशी होती है कि दि० जैन समाजमें कुछ वर्षों से ऐसी भावना का प्रादुर्भाव हुआ है । कुछ समाज-धर्म हितैषी विद्वानों ने सुन्दर पाठ्यक्रम बनाने के लिए अपनी बाणो, लेखनी और शक्ति का उपयोग भी यथाशक्ति किया है और कर रहे हैं । दि० जैन समाज में संस्कृत पाठशालाओं की संख्या तो विशेष है और हर साल कलकत्ता और बनारस की परीक्षाओं में सैकड़ों छात्र न्यायतीर्थ, आचार्य, शास्त्री आदि हो जाते हैं। परन्तु मुझे लिखते हुए दुःख होता है कि उन टाईटलधारी शास्त्रियों को व्यवहार का ज्ञान तो क्या अपने पढे हुए शास्त्रों का ज्ञान भी सन्तोष कारक नहीं दिखता। जिस विषय के वे आचार्य, तीर्थ या शास्त्री हैं उसो विषय के मध्यमा का ग्रन्थ भी व यथार्थ नहीं पढ़ा सकते हैं । मैं अपने अनुभव से कहता हूँ कि बनारस विश्वविद्यालय के शास्त्री (जिस परीक्षामें दि० न्याय के और स्योद्वादमंजरी, रत्ताकरावतारिका सम्मतितर्कादि श्वेताम्बर न्याय के ग्रन्थ हैं) और कलकत्ता यूनिवर्सिटी के तीर्थ एक दि० पण्डित जी एक
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